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सऊदी अरब से तेल कम ख़रीदने का भारत पर क्या असर पड़ेगा

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Apr 9, 2021
सऊदी अरब से तेल कम ख़रीदने का भारत पर क्या असर पड़ेगा

2 मार्च को गयाना के एक बंदरगाह से 10 लाख टन कच्चा तेल लेकर एक जहाज़ गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह के लिए रवाना हुआ. इसे 9-10 अप्रैल तक अपनी मंज़िल पर पहुँचना है. इस कच्चे तेल की ख़रीदार एचपीसीएल और मित्तल एनर्जी लिमिटेड कंपनी हैं.

ये ताज़ा आयात केवल इसलिए अहम नहीं है कि भारत पहली बार गयाना से तेल ख़रीद रहा है, बल्कि ये इस बात का भी प्रतीक है कि भारत सऊदी अरब और खाड़ी के अन्य देशों के तेल पर निर्भरता कम करना चाहता है.

दरअसल, भारत ने सरकारी तेल रिफ़ाइनरी और तेल कंपनियों से सऊदी अरब से तेल आयात में कमी करने को कहा है. गयाना से आने वाला ये कार्गो इस बात का भी संकेत है कि देश की सरकारी रिफ़ाइनरी और निजी तेल कंपनियाँ सरकार के उस आदेश पर अमल कर रही हैं.

इस आदेश में इनसे कहा गया है कि वो सऊदी अरब और खाड़ी के कुछ दूसरे देशों पर तेल निर्भरता कम करने के लिए मई से दुनिया भर में अलग-अलग कंपनियों और देशों से तेल ख़रीदना शुरू कर दें.

भारत सरकार के आदेश का निशाना असल में सऊदी अरब है. भारत सऊदी अरब से तेल ख़रीदने वाला दूसरा बड़ा मुल्क है.

सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक और निर्यातक है. दूसरी तरफ़ भारत तेल आयात करने वाला और इसका इस्तेमाल करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है.

अपनी अर्थव्यवस्था के निरंतर विकास के लिए भारत तेल पर बहुत अधिक निर्भर करता है. इसीलिए इसे न केवल भारी मात्रा में तेल चाहिए बल्कि सस्ते दामों पर भी चाहिए. अगर तेल का भाव दो डॉलर प्रति बैरल भी बढ़ जाए, तो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ता है.

सऊदी अरब और तेल का उत्पादन करने और बेचने वाले 23 देशों के संगठन ओपेक ने पिछले साल महामारी के दौरान तेल की क़ीमत 20 डॉलर प्रति बैरल से भी कम हो जाने पर इसका उत्पादन घटाना शुरू कर दिया था.

सऊदी अरब ने ओपेक के अलावा भी तेल का अपना उत्पादन अलग से भी कम कर दिया था. इस कारण तेल का दाम बढ़ कर 72 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गया था, जो अब कुछ घट कर 67 डॉलर प्रति बैरल पर रुका है.

भारत जनवरी से ओपेक देशों और ख़ास तौर से सऊदी अरब से तेल के उत्पादन को बढ़ाने की मांग कर रहा है. गुरुवार को ओपेक के इन देशों ने मई से तेल का उत्पादन बढ़ाने की घोषणा की, लेकिन ये बढ़ोतरी अब भी भारत के लिए काफ़ी नहीं है.

भारत ने सऊदी अरब और तेल का उत्पादन करने वाले बड़े देशों के संगठन ओपेक से तेल का उत्पादन बढ़ाने को कहा था, ताकि अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में तेल की क़ीमत घटे.

लेकिन ओपेक देशों का नेतृत्व करने वाला सऊदी अरब भारत की मांग पूरी करने में संकोच कर रहा है. इसलिए तेल और गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने रिफ़ाइनरीज़ से कहा है कि वो सऊदी आयात पर 36 प्रतिशत निर्भरता कम करें और दूसरे देशों से तेल आयात करें.

क्या भारत के इस क़दम से मक़सद पूरा होगा?
यह कहना अभी मुश्किल है. लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत के लिए ऐसा करना सही नहीं होगा. सऊदी अरब पर तेल का उत्पादन बढ़ाने का दबाव बनाए रखना ही उचित क़दम होता.

भारतीय जनता पार्टी के आर्थिक मामलों के प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल के अनुसार भारत अधिक तोलमोल करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि भारत को तेल की ज़रूरत है. यह अपनी ज़रूरत का 85 प्रतिशत तेल और इससे संबंधित उत्पाद आयात करता है.

लेकिन भारत ने सऊदी अरब के तेल को ख़रीदना बंद कर दिया, तो इसे दूसरे जिन देशों से तेल आयात करना पड़ सकता है, उसमें दो समस्याएँ आ सकती है. पहली ये कि अगर अमेरिका या पश्चिमी देशों की कंपनियों से तेल ख़रीदा, तो डॉलर में सौदा करना होगा और शर्तें भी भारत के पक्ष में नहीं होंगी.

दूसरी समस्या ये होगी कि अगर रूस से तेल ख़रीदा, तो क्वालिटी सही नहीं मिलेगी.

सच तो ये है कि भारत सऊदी अरब और दूसरे खाड़ी देशों के तेल पर काफ़ी निर्भर करता है. तेल के अपने कुल आयात का 60 प्रतिशत हिस्सा भारत सऊदी अरब, इराक़ और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों से पूरा करता है.

अगले 20 सालों में भारत में तेल की खपत दोगुनी होने वाली है और तब ये दुनिया में तेल इस्तेमाल करने वाला सबसे बड़ा देश बन जाएगा. इसलिए इसे बग़ैर किसी रुकावट के तेल आयात करने की ज़रूरत पड़ती रहेगी.

सऊदी नहीं तो कहाँ से तेल की ख़रीद होगी?
सऊदी अरब से तेल के आयात को कम करने के लिए भारत किन किन देशों से तेल आयात कर सकता है?

विशेषज्ञ कहते हैं कि तेल निर्यात करने वाले देशों और बड़ी कंपनियों की कमी नहीं है. उदाहरण के लिए ओपेक देशों के बाहर रूस तेल बेचने वाला सबसे बड़ा देश है. लेकिन बात क्वालिटी यानी तेल के गुणवत्ता की है.
हाल तक भारत ईरान और वेनेज़ुएला से आसान शर्तों पर तेल ख़रीदा करता था, लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों के बाद भारत अब इन दोनों देशों से तेल आयात नहीं करता है. ईरान बहुत आसान शर्तों पर भारत को तेल बेचा करता था.

गोपाल कृष्ण अग्रवाल उम्मीद करते हैं कि तीन-चार महीनों में ईरान से तेल आयात करने की संभावना बने.

याद रहे कि हाल ही में ईरान और चीन ने 25 सालों के लिए एक बड़ा समझौता किया. इसके तहत ईरान चीन को लगातार कच्चा तेल सप्लाई करेगा और बदले में चीन ईरान में भारी निवेश करेगा.

न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार के मुताबिक़ ये निवेश 400 अरब डॉलर तक का हो सकता है.

क्या भारत को सस्ते दाम में तेल मिलेगा?
विशेषज्ञ कहते हैं कि मई से अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की कीमत में गिरावट आने की पूरी संभावना है, क्योंकि ओपेक देशों ने हाल ही में तेल के उत्पादन को बढ़ाने का फ़ैसला लिया है.

लेकिन उनका कहना था कि इसका सीधा असर देश के आम उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा, ये कहना मुश्किल है.

मुंबई में ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञ विवेक जैन के मुताबिक़, “अगर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल का भाव गिरा और केंद्र और राज्यों ने एक्साइज ड्यूटी नहीं बढ़ाई, तो आम उपभोक्ताओं तक पहुँचने वाले पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें गिरेंगी.”

आखिर ऐसा क्या है कि भारत को सऊदी अरब से तेल ख़रीदना सस्ता पड़ता है, जबकि अमेरिका या गयाना जैसे देशों से महंगा?

विशेषज्ञ कहते हैं कि सऊदी तेल भारत को सस्ता इसलिए पड़ता है, क्योंकि दोनों देशों के बीच फासला बहुत कम है. लेकिन अमेरिका या गुयाना जैसे देशों से तेल आयात करने में दूरी के कारण इसकी ढुलाई अधिक पड़ती है, जिसका सीधा असर पेट्रोल पंप पर मिलने वाले पेट्रोल और डीज़ल पर पड़ेगा. इसलिए वो कहते हैं कि भारत का यह क़दम सेल्फ़ गोल की तरह होगा.

सऊदी अरब के साथ रिश्तों पर असर?
भारत के इस क़दम से सऊदी अरब के साथ गहरे रिश्तों पर असर नहीं पड़ेगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से भारत और सऊदी अरब में निकटता बढ़ी है और रिश्तों में गहराई आई है.

सऊदी अरब ने भारत में 100 अरब डॉलर निवेश करने की एक पक्की योजना सामने रखी है. बदले में भारत सऊदी अरब को रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में मदद करेगा. लेकिन हाल के महीनों में तेल को लेकर दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास पैदा हुई है.

बीते दिनों भारत के तेल और गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सऊदी अरब के तेल मंत्री अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान के उस बयान पर आपत्ति जताई थी, जिसमें उन्होंने भारत के कच्चे तेल के दाम को कम करने की अपील पर कहा था कि भारत अपने उस स्ट्रैटेजिक तेल रिज़र्व का इस्तेमाल करे, जो उसने पिछले साल तेल की गिरती क़ीमत के बीच ख़रीद कर जमा किया था.

धर्मेंद्र प्रधान ने सऊदी अरब के तेल मंत्री के इस बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ये बयान कूटनीतिक रूप से सही नहीं है.

इसके बावजूद आपसी रिश्ते अब भी मज़बूत हैं. पिछले छह सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब का दो बार दौरा किया है, जिसके बाद से भारत की नज़रों में सऊदी अरब की हैसियत केवल एक तेल बेचने वाले देश की तरह से नहीं रह गई है. दोनों देश अब कई क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं.

BBC

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