• May 5, 2024 12:36 am

इसराइल-हमास युद्ध: कौन देश इसराइल के साथ है और कौन ख़िलाफ़

नवंबर 2 2023 ! लेकिन पिछले महीने सात अक्टूबर को इसराइल के भीतर हमास के हमले के बाद विभाजन की यह लक़ीर पहले से कहीं ज़्यादा मोटी और स्पष्ट हो गई है.

हमास के हमले के तुरंत बाद कुछ देशों ने हमास की निंदा करते हुए इसराइल का समर्थन किया तो कुछ देश हमास के समर्थन में जा खड़े हुए.

कुछ देशों ने स्थायी शांति स्थापित करने के लिए नई कोशिशें करने की अपील की, तो कुछ ने इसराइल को इस युद्ध का दोष दिया.

इसराइल के साथ राजनयिक संबंध कायम करते हुए, जिन अरब के देशों ने अपने राजदूत वहाँ भेजे थे, वहाँ भी असहजता बढ़ रही है. दुनिया के कई देशों ने इसराइल से अपने राजदूत वापस बुला लिए हैं.

ईरान ने तो सभी इस्लामिक देशों से इसराइल से ट्रेड ख़त्म करने की अपील की है.

दूसरी तरफ़ अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देश इसराइल के साथ खड़े हैं और इस युद्ध में उसकी मदद कर रहे हैं.

युद्ध शुरू हुए 27 दिन हो गए हैं. हमास शासित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक ग़ज़ा में मरने वालों की संख्या 8700 से ज़्यादा हो गई है, वहीं इसराइल के क़रीब 1400 लोग मारे गए हैं.

युद्ध कब खत्म होगा? हमास ने जिन लोगों को बंधक बनाया है, वे कब रिहा होंगे? ग़ज़ा में रहने वाले लोगों की जिंदगी कब पटरी पर लौटेगी, इसका जवाब फ़िलहाल किसी के पास नहीं है.

साल 1948 में इसराइल को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक अमेरिका था. हमास के हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन इसराइल पहुंचे थे और उन्होंने कहा था कि वे ‘इसराइल के साथ खड़े हैं’.

इसराइल को अमेरिका, मध्य-पूर्व में एक महत्वपूर्ण सहयोगी की तरह देखता है. डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन, दोनों ही पार्टी के राष्ट्रपतियों के कार्यकाल के दौरान इसराइली इलाक़े को महफूज़ रखने की कोशिश, अमेरिकी विदेश नीति का हिस्सा रही है.

साल 2020 में अमेरिका ने इसराइल की 3.8 अरब डॉलर की मदद की थी, इसके पहले साल 2016 में 2017 से 2028 तक लागू होने वाले 38 अरब डॉलर के एग्रीमेंट पर अमेरिका ने दस्तखत किए थे.

अमेरिका न सिर्फ़ यहूदियों को अपने यहाँ बसाता है, बल्कि इसराइल की सेना को दुनिया की सबसे उन्नत सेना बनाने में भी करोड़ों डॉलर खर्च करता है.

उन्होंने कहा था कि अगर इस युद्ध में हमास की जीत हुई तो यूरोप ख़तरे में पड़ जाएगा. मैक्रों ने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ इसराइल की नहीं है, बल्कि यह लड़ाई पूरे यूरोप, अमेरिका और मध्य पूर्व के भविष्य की लड़ाई है.

मैक्रों ने फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास को “एक आतंकी संगठन” बताया और कहा कि “ये संगठन इसराइल के लोगों की मौत चाहता है.”

इसराइल पर हमसे के हमले में 10 से ज्यादा फ्रांस के नागरिक मारे जा चुके हैं और दर्जन भर से ज्यादा अब भी लापता हैं.

फ्रांस की सरकार ने देश में फ़लस्तीनियों के समर्थन में विरोध प्रदर्शनों पर भी रोक लगा दी है. गृह मंत्री जेराल्ड डर्माविन ने चेतावनी दी है कि फ्रांस में रहने वाले विदेशी नागरिक अगर नियमों का पालन नहीं करेंगे तो उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जाएगा.

1948 में संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव से अस्तित्व में आने के बाद से इसराइल ने अपने पड़ोसी अरब देशों के साथ कई युद्ध लड़े हैं.

मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के दो दर्जन से ज्यादा देश ऐसे हैं जिनका इसराइल के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं. इन देशों में सबसे अहम नाम ईरान का है.

ईरान, इसराइल के अस्तित्व से ही इनकार करता है. उसका कहना है कि इसराइल फ़लस्तीनियों की ज़मीन पर अवैध कब्जा कर रहा है.

ईरान और इसराइल की सीमाएं तो एक दूसरे नहीं लगती हैं, लेकिन इसराइल के पड़ोसी देशों जैसे लेबनान, सीरिया और फलस्तीन में ईरान का प्रभाव साफ़ दिखाई देता है.

जानकार मानते हैं कि भले ही इस हमले के पीछ सीधे तौर पर ईरान का हाथ न हो लेकिन हमास के लड़ाकों की ट्रेनिंग, उन्हें हथियार देने और हमले से पहले समर्थन देने में ईरान की अहम भूमिका है.

इस जंग में ईरान, खुलकर हमास का समर्थन कर रहा है और बार-बार इसराइल को कड़े परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रहा है.

सोर्स :-“BBC  न्यूज़ हिंदी”                                  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *