• May 11, 2024 10:58 pm

यह बात सिद्ध हो चुकी है कि मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य परस्पर जुड़े हुए हैं

ByADMIN

May 11, 2022 ##animal, ##Health, ##human

11 अप्रैल2022 | अब जब कोविड-19 के कमजोर पड़ने और खत्म होने के आसार नजर आ रहे हैं तो चर्चा होने लगी है कि अगली वैश्विक महामारी कब आएगी और भविष्य में कौन-सी नई बीमारियां फैल सकती हैं। बिल गेट्स की हालिया किताब में अनुमान लगाया गया है कि अगली वैश्विक महामारी 20 साल में आ सकती है।

यह अनुमान बहुत आशावादी है क्योंकि कोविड से मात्र 11 साल पहले 2009-10 में स्वाइन फ्लू एच1एन1 के कारण महामारी आई थी। और अब तो हर गुजरते दिन दुनिया में नई बीमारियों और अगली महामारी के उभरने की सम्भावना पिछले दिन से अधिक हो जाती है। कारण कई हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण रोगाणु नई परिस्थितियों और जगहों में भी ढलने लगे हैं।

वनों की कटाई और जंगलों में बढ़ते मानवीय दखल के कारण नए-नए रोगाणु इंसानी संपर्क में आने लगे हैं। साथ ही, शहरों में बढ़ती भीड़ और सघन बसावट संक्रमणों के प्रसार में मददगार साबित होती हैं। हवाई यात्राओं के कारण 24 घंटे से भी कम समय में संक्रमण का प्रसार दुनिया के एक से दूसरे हिस्से में होने लगा है। नतीजतन, पिछले कुछ दशकों में नई बीमारियां उभरी हैं और पुरानी बीमारियां फिर से पैर पसार रही हैं।

अभी कुछ दिनों पहले प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल ‘नेचर’ में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि आने वाले 50 सालों में पृथ्वी का तापमान 2 डिग्री बढ़ गया तो महामारियों के फैलने की सम्भावना तेजी से बढ़ जाएगी। अध्ययन कहता है कि दो डिग्री तापमान बढ़ना न केवल इंसानों बल्कि जानवरों को भी प्रभावित करेगा। ऐसे में कई जंगली जानवरों की प्रजातियां नए इलाकों में बसने को मजबूर हो जाएंगी।

ऐसा हुआ तो उनके साथ बीमारी फैलाने वाले रोगाणु भी लोगों के संपर्क में आएंगे। वर्ष 2070 तक करीब 10 से 15 हजार नए रोगाणु (कीटाणु और विषाणु), जो अब तक जानवरों में सीमित थे, इंसानों के संपर्क में आ जाएंगे। चूंकि ये सब रोगाणु नए होंगे, मानवों में इनके खिलाफ प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता कम होगी और महामारियों की संभावना बढ़ जाएगी। वैश्विक तापमान बढ़ने और बीमारियों के फैलने की बात से हमें चौंकना नहीं चाहिए।

यह बात सिद्ध हो चुकी है कि मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य परस्पर जुड़े हैं। अंतर्संबंध का मौजूदा प्रमाण तो कोविड-19 ही है। एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में हर साल 1.3 करोड़ लोग उन पर्यावरणीय कारकों से मर रहे हैं, जिनसे बचा जा सकता है। खैर, इस सबसे घबराना समाधान नहीं है। हम मिलकर इनमें से कई चुनौतियों से पार पा सकते हैं और अगली महामारी को आगे धकेल सकते हैं।

इसलिए पर्यावरण से छेड़छाड़ किए बिना अपनी व आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्रतिबद्ध होना आज की बड़ी जरूरत है। इसके लिए हमें ऐसे प्रयास करने होंगे कि जंगलों और जानवरों से वायरस का फैलाव इंसानों में न हो। समझना होगा कि जब किसी वन की कटाई की जाती है या अंधाधुंध विकास के लिए पेड़ों को काटा जाता है, तो माइक्रोब्स आसानी से इंसानों के संपर्क में आ जाते हैं।

सरकारों को सुनिश्चित करना होगा कि विकास के नाम पर प्रकृति का नुकसान न हो। सरकारों को खाना पकाने और रोशनी के लिए स्वच्छ ऊर्जा की व्यवस्था को प्राथमिकता देनी चाहिए। याद रखना होगा कि वैश्विक तापमान बढ़ने से रोकने से हम बीमारियों से बच सकते हैं और दुनिया की सरकारों को मिलकर कदम उठाने होंगे।

हमें जंगलों, जीव-जंतुओं और जनमानस के स्वास्थ्य का ख्याल रखना होगा। महामारियां और भी कारणों से फैल सकती हैं। हर देश को जरूरी तैयारी करते रहना होगा। टीकों के बनाने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। बीमारियों और जीनोमिक सर्विलान्स की क्षमता को कई स्तर पर बढ़ाना होगा। सरकारों को जनस्वास्थ्य के क्षेत्र में, खास तौर से स्वास्थ्यकर्मियों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को बढ़ाना होगा।

महामारियों की तैयारी को आपदाओं से निबटने की तैयारी से जोड़ना होगा। महामारियों और मानव का सभ्यता की शुरुआत से ही सम्बन्ध रहा है। कई महामारियों ने साम्राज्यों को खत्म कर दिया था। हम उन्हें पूरी तरह से रोक तो नहीं सकते लेकिन विज्ञान की मदद से उनके असर को कम कर सकते हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Source;- ‘’दैनिकभास्कर’’

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