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जुबां छिपाती है बेटों की करतूत, आंखें बयां करती हैं दर्द, पढ़िए बेघर हुए बुजुर्गों की दुखभरी कहानी

ByPrompt Times

Jul 14, 2020
जुबां छिपाती है बेटों की करतूत, आंखें बयां करती हैं दर्द, पढ़िए बेघर हुए बुजुर्गों की दुखभरी कहानी

‘मैं अपने बेटों का नाम नहीं लूंगा, वरना वो बदनाम हो जाएंगे…। आगरा के रामलाल वृद्धाश्रम में रह रहे देवी सिंह बेटों का अहित होने की आशंका पर पीड़ा से भर जाते हैं। बेटों ने घर से निकाल दिया…लेकिन काफी कुरेदने पर भी उनका नाम नहीं लिया। रामबेटी बोलीं, बच्चों ने बुरा किया लेकिन… हैं तो वो अपने ही। मन का दर्द दोनों की आंखों से झलक पड़ता है।

आश्रम में रह रहे 200 से अधिक लोगों की नजर मुख्य द्वार पर ही लगी रहती है कि बच्चे उनको लेने आएंगे। इन दिनों ऐसा इसलिए ज्यादा हो रहा है क्योंकि लॉकडाउन से अनलॉक-2 के बीच 11 लोगों को उनके बच्चे आश्रम से घर ले जा चुके हैं।

‘यह बेघर होने से अच्छा है’

वर्ष 2017 में जल निगम से रिटायर हुए देवी सिंह अनलॉक-1 में जब आश्रम पहुंचे, तो काफी टूटे हुए थे। वो गढ़ी भदौरिया में रहते थे। बेटों के बारे में पूछा तो हाथ जोड़कर बोले- मैं अपनी दर्द भरी दास्तां में बेटों का नाम नहीं लूंगा, वो बदनाम हो जाएंगे। हालांकि बातों के दौरान दर्द होठों पर आ गया। बोले, बेटों ने कई बार उनकी पिटाई लगाने की कोशिश भी की। यहां हूं…ये बेघर होने से तो अच्छा है। इसके बाद….शून्य में ताकते रहे और चुप्पी साध गए।

‘कोई बेटा नहीं दे ऐसी सजा’

10 महीने से आश्रम में रह रहीं फतेहपुर सीकरी की रामबेटी ईश्वर से हर पल मुक्ति की प्रार्थना करती हैं। बोलीं कि हर रोज यही कहती हूं कि दो मुठ्ठी राख होकर यमुना में ही मिल जाऊं। अगर किसी मां से कोई बड़ी गलती भी हो जाए, तो उनका बेटा उन्हें वो सजा नहीं दे, जो उन्हें आज मिल रही है। रामबेटी के दो बेटे हैं।

‘आंसुओं ने बयां किया दर्द’

रामलाल वृद्ध आश्रम में चार साल से रह रहीं लक्ष्मी की आंखों में अपनों के साथ नहीं होने का दर्द साफ झलक रहा था। काफी मुश्किल से बात करने के लिए तैयार हुईं। बोलीं कि आश्रम के कमरे में बैठकर बच्चों का बचपन याद कर मुस्कुरा लेती हूं। फिर आज की हकीकत को सामने देख डर लगने लगता है। आंखों में भर आए आंसू पोंछकर कहा कि बेटे उनकी पिटाई करते थे। लेकिन आज भी उनके आने का इंतजार है।

‘दो साल बाद मां से मिली बेटी दौड़कर गले से लिपटी, रो पड़ी’

दो साल से अपनी मां की तलाश में भटक रही चंचल ने गुरुवार को रामलाल वृद्ध आश्रम में मां लक्ष्मी देवी उर्फ कल्पना देवी को देखा, तो उनको जैसे खुशियों का संसार मिल गया। मां को सामने देख तेजी से भागी और लिपटकर रोने लगीं। बेटा बंटी भी साथ आया था। उन्होंने बताया कि ग्राम सोनिगा, थाना खंदौली की रहने वाली कल्पना देवी को सात दिन पहले उनके जेठ के बेटे सुखवीर ने आश्रम में देखा था। मां मानसिक रूप से बीमार रहती हैं। वह घर से चली गई थीं।

शुक्रिया लॉकडाउन…11 लोग अपने घर पहुंचे

रामलाल वृद्ध आश्रम के मैनेजर शिवप्रसाद शर्मा का कहना है कि लॉकडाउन से अनलॉक-2 के बीच आश्रम में रह रहे 11 लोगों को उनका परिवार ले गया। लवली गर्ग, सतीश चंद, गायत्री देवी, दीनानाथ और चिम्मनलाल को उनका परिवार लॉकडाउन में घर वापस ले गया। अनलॉक में शशि मिश्रा, प्राची मिश्रा, ममता तिवारी, दयावती, गजराज सिंह और चेलाराम भी अपने घर पहुंच चुके हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान घर में रहने पर बच्चों को माता-पिता की कमी का अहसास हुआ। पिछले साढ़े तीन महीने में इतनी संख्या में मां-पिता का घर वापस जाना काफी अच्छा आंकड़ा है।

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