• May 2, 2024 2:19 pm

जूट, हिरण और हंगेश्वरी मंदिर… हुगली को कितना जानते हैं जहां आज पीएम मोदी पहुंचेंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के दौरे पर आज पश्चिम बंगाल पहुंच रहे हैं. दौरे की शुरुआत हुगली से होगी. हुगली का बड़ा ऐतिहासिक महत्व रहा है. एक समय पर जूट मिलों के कारण हुगली दुनिया भर में जाना जाता था और यह बंगाल के साथ ही पूरे देश के विकास में अहम भूमिका निभा रहा था. आइए जानते हैं इस क्षेत्र की और दिलचस्प बातें.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के दौरे पर आज पश्चिम बंगाल पहुंच रहे हैं. सबसे पहले वह हुगली जिले के आरामबाग में एक सभा को संबोधित करेंगे. कई परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन भी करेंगे. प्रधानमंत्री जिस हुगली से अपने दौरे की शुरुआत कर रहे हैं, उसका बड़ा ऐतिहासिक महत्व है. आइए यहां के जूट मिलों और प्राचीन मंदिरों समेत हुगली की दिलचस्प बातों को जानते हैं.

हुगली पश्चिम बंगाल का एक अहम जिला है. कोलकाता से करीब 40 किमी की दूरी पर हुगली नदी के पश्चिमी तट पर स्थित हुगली वास्तव में 15वीं शताब्दी में एक नदी बंदरगाह था. अब यह पश्चिम बंगाल में आर्थिक रूप से सबसे अधिक विकसित जिलों में से एक है. हुगली पश्चिम बंगाल का एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण शहर भी है. वैसे तो आधिकारिक तौर पर हुगली का गठन साल 1795 में किया गया था पर इसका अस्तित्व 500 साल से भी ज्यादा पुराना है.

जूट मिलों से है पश्चिम बंगाल के इस जिले की पहचान

हुगली जिले में ही भुरशुट के बंगाली साम्राज्य की समृद्ध विरासत मिलती है. पश्चिम बंगाल के हावड़ा और हुगली जिलों में फैला भुरशुट एक मध्ययुगीन हिंदू साम्राज्य था, जहां बाद में पुर्तगाली, फ्रांसीसी और डच सभी ने अपने उपनिवेश स्थापित किए थे. हुगली जिले का मुख्यालय चुंचुड़ा में है. इसी जिले के रिसड़ा में साल 1855 में पहली जूट मिल की स्थापना की गई थी. रिसड़ा कोलकाता के काफी नजदीक है. पश्चिम बंगाल में धीरे-धीरे हुगली नदी के किनारे संकरी पट्टी में जूट मिलों की स्थापना होती चली गई, जहां जूट से बने तमाम उत्पाद तैयार किए जाते थे. इनमें से कई मिलों का अस्तित्व आज भी है.

हालांकि, साल 1947 में देश के विभाजन के कारण जूट उत्पादक क्षेत्र का कम से कम तीन चौथाई हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में चला गया था. जूट मिलों के कारण हुगली एक समय में दुनिया भर में जाना जाता था और यह बंगाल के साथ ही पूरे देश के विकास में अहम भूमिका निभा रहा था. यह और बात है कि समय के साथ जूट मिलें बंदी की कगार पर पहुंच गईं और आज ज्यादातर मिलें बंद हो चुकी हैं. हुगली की पहचान यहां बने धार्मिक और पर्यटन स्थलों के कारण भी है.

प्राचीन हंगेश्वरी मंदिर है धार्मिक पर्यटन का बड़ा केंद्र

हुगली जिले के बांसबेड़िया में ही हंगेश्वरी मंदिर है, जिसे हंसेश्वरी मंदिर भी कहा जाता है. इस प्राचीन हिंदू मंदिर की आधारशिक्षा साल 1799 में राजा नरसिंह देव राय ने रखी थी. 1802 ईस्वी में मंदिर की दूसरी मंजिल के निर्माण के पूरा होने के बाद ही उनकी मृत्यु हो गई और मंदिर अधूरा रह गया. हालांकि उनकी दूसरी पत्नी रानी शंकरी ने बाद में इस मंदिर का काम शुरू कराया और इसका निर्माण साल 1814 में पूरा हुआ था. इस मंदिर की एक विशिष्ट वास्तुकला है. इसमें 13 मीनार या रत्न हैं और इनमें से हर मीनार को खिलते हुए कमल की कली के रूप में निर्मित किया गया है.

हुगली के हंगेश्वरी मंदिर और तारकेश्वर मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

शरीर की संरचना से मिलती है मंदिर की आंतरिक संरचना

हंगेश्वरी मंदिर की आंतरिक संरचना मानव शरीर की संरचना से मिलती-जुलती है. इस मंदिर की पांचों मंजिलों को मानव शरीर के पांच हिस्सों बज्राक्ष, इरा, चित्रिनी, पिंगला और सुषमना के रूप में जाना जाता है. बताया जाता है कि राजा नरसिंह देव राय की मां का नाम हंसेश्वरी था, जिनके नाम पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था, जो बाद में हंगेश्वरी नाम से प्रसिद्ध हुआ. हंगेश्वरी देवी को हिंदू मान्यताओं में माता दक्षिणा काली का ही एक रूप माना जाता है. इसी मंदिर के परिसर में एक और मंदिर है, जिसे अनंत वासुवेद मंदिर के नाम से जाता है. थोड़ी ही दूरी पर राजा नरसिंह देव राय द्वारा ही बनवाया गया स्वानभाबा काली मंदिर भी है.

कोलकाता से करीब 60 किमी की दूरी पर हुगली में ही प्रसिद्ध तारकेश्वर मंदिर है, जिसे तारकनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. साल 1729 में निर्मित भगवान शिव का यह मंदिर हुगली के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है. तारकेश्वर मंदिर में भोलेनाथ की पूजा करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. शिवरात्रि और सावन के दौरान तो यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है.

चर्च और इमामबाड़े की है अपनी पहचान

हुगली जिले के ही बंडेल में पश्चिम बंगाल के सबसे पुराने चर्चों में से एक चर्च भी है, जिसे बंडेल चर्च के नाम से ही जाना जाता है. इसकी स्थापना 1599 में की गई थी. हुगली में 18वीं सदी में बनवाया गया एक प्रसिद्ध इमामबाड़ा है. इसे हाजी मोहम्मद मोहसिन ने गंगा नदी के किनारे बनवाया था. इमामबाड़ा की दो मंजिला इमारत 1861 में बनकर तैयार हुई थी. इसकी दीवार पर कुरान से एकीकृत डिजाइन और पवित्र लेखन उत्कीर्ण की गई है. इसके मेन गेट के ऊपर एक पुरानी घड़ी लगी है, जो काफी प्रसिद्ध है.

हिरणों के लिए भी जाना जाता है हुगली जिला

जूट और मंदिर के अलावा हुगली की पहचान हिरणों से भी है. यहां कामारपुकुर में नदी के संगम पर हिरणों का एक पार्क है. यह हुगली के पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है. इसे गार्मुचुक हिरण पार्क या फिर सामान्यतौर पर हिरण पार्क के रूप में जाना जाता है. यहां हिरणों की काफी बड़ी आबादी पाई जाती है और नदी के संगट तट पर होने के कारण गार्मुचुक में हरी-भरी घास के खूब मैदान पाए जाते हैं, जिसका इस्तेमाल हिरण आराम से घूमते हुए अपनी चारागाह के रूप में करते हैं.

सोर्स :- ” TV9 भारतवर्ष ”

 

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