• May 2, 2024 11:02 pm

महाराष्ट्र: मराठा आरक्षण पर मझधार में फंसी बीजेपी, नाराज ओबीसी जाति से कैसे बनाएगी संतुलन?

सितम्बर 13 2023 ! महाराष्ट्र की सियासत में मराठा आरक्षण को लेकर काफी लंबे समय से मांग उठती रही है, लेकिन एक बार फिर यह मुद्दा गरमा गया है. मराठा आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे मनोज जरांगे मराठों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र देकर ओबीसी कोटे से आरक्षण देने की मांग पर आमरण अनशन कर रहे हैं. ऐसे में शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को कुनबी जाति के तहत आरक्षण देने की वकालत कर रही है, जिसे लेकर ओबीसी समुदाय विरोध में उतर आया है. मराठों को ओबीसी कोटे से आरक्षण देने का विरोध कर रहे हैं. मराठों के आरक्षण को लेकर लेकर बीजेपी-शिंदे सरकार सियासी मझधार में फंस गई है. ऐसे में देखना है कि कैसे आरक्षण के मझधार से पार पाती है?

मराठा आरक्षण के मुद्दे पर सोमवार देर शाम महाराष्ट्र में हुई सर्वदलीय बैठक में सहमति बन गई है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आश्वासन दिया है कि अन्य समाज के आरक्षण में बिना छेड़छाड़ किए मराठा आरक्षण लागू किया जाएगा. सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि मनोज पाटिल के भूख हड़ताल को ध्यान में रखते हुए हम उनसे विनती करते हैं कि वह अपना अनशन वापस लें. मनोज जरांगे पाटिल की सेहत की हमें चिंता है.

सर्वदलीय बैठक में सभी ने एक साथ मांग किया है कि सरकार मनोज जरांगे पाटिल की मांग को लेकर काम करे. साथ ही भरोसा दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किया गया मराठा आरक्षण बहाल किया जाएगा. उन्होंने बताया कि जस्टिस शिंदे समिति मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग पर काम कर रही है और राज्य सरकार को कानूनी रूप से इसे लागू करने के लिए कुछ समय चाहिए.

बता दें कि महाराष्ट्र में पिछले चार दशकों से मराठा आरक्षण की मांग चल रही है. इस बीच तमाम पार्टियों की सरकारें आईं और गईं, लेकिन अभी तक किसी ने भी मराठा आरक्षण को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. मराठा समुदाय लंबे समय से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहे है. तीन दशक पहले मराठा आरक्षण को लेकर पहली बार महाराष्ट्र में आंदोलन हुआ था. यह आंदोलन मठाड़ी लेबर यूनियन के नेता अन्नासाहब पाटिल की अगुवाई में हुआ था. इसके बाद से समय-समय पर मराठा आरक्षण को लेकर आवाज उठती रही और कई बार आंदोलन हिंसक रूप भी अख्तियार कर चुका है. महाराष्ट्र में ज्यादातर समय मराठा समुदाय के मुख्यमंत्रियों के होने के बावजूद कोई हल नहीं निकल सका.

साल 2014 के चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठाओं को 16 फीसदी आरक्षण देने के लिए अध्यादेश लेकर आए थे, लेकिन 2014 में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार चुनाव हार गई और बीजेपी-शिवसेना की सरकार में देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने. फडणवीस सरकार में मराठा आरक्षण को लेकर एमजी गायकवाड़ की अध्यक्षता में एक आयोग बना.

कमेटी की सिफारिश के आधार पर फडणवीस सरकार ने सोशल एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लास एक्ट के विशेष प्रावधानों के तहत मराठाओं को 16 फीसदी आरक्षण दिया, पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी और शैक्षणिक संस्थानों में 12 फीसदी कर दिया. फिर साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को पूरी तरह ही रद्द कर दिया.

सोर्स :- ” TV9 भारतवर्ष    

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