• April 26, 2024 9:31 pm

मालदीव: भारत और चीन के बीच क्यों बंटी है यहां की राजनीति?

ByPrompt Times

Oct 22, 2020
मालदीव: भारत और चीन के बीच क्यों बंटी है यहां की राजनीति?

भारत पर लगे रहे आरोपों में यह भी शामिल है कि वो मालदीव में अपनी सैन्य मौजूदगी स्थापित करना चाहता है और देश की संप्रभुता और स्वतंत्रता में दख़ल देने की कोशिश कर रहा है.

हालांकि भारत और मालदीव, दोनों देशों की सरकारों ने इन आरोपों का तुरंत खंडन किया.

इसी विपक्ष ने जब पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन साल 2013 और 2015 में सत्ता में थे, चीन के साथ मालदीव के संबंधों की वकालत की थी. उन्होंने इन संबंधों का लगातार पालन किया और कई मुद्दों पर चीन का समर्थन भी माँगा जिनमें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल में बंद यामीन को बाहर लाने के प्रयास भी शामिल हैं.

भारत ने क्या किया?

बीते कुछ महीनों में भारत ने द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिए काफ़ी अहम प्रयास किए हैं. इनमें जुलाई महीने में कम्युनिटी डेवेलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए 55 लाख डॉलर की धनराशि देने, भारत में कोच्चि से मालदीव के कुल्हुधुफुशी के बीच कार्गो फ़ेरी की सितंबर में शुरुआत करने के साथ मालदीव के कहने पर डॉर्नियर एयरक्राफ़्ट देने जैसे कई अहम क़दम शामिल हैं.

कोविड-19 के प्रभाव को कम करने में मदद करने के लिए भारत ने मालदीव को 25 करोड़ डॉलर की बजटीय सहायता दी. जो कि मालदीव को अब तक किसी भी एक देश से मिलने वाली सबसे बड़ी धनराशि थी.

हालांकि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने अगस्त 2020 में मालदीव में अब तक के सबसे बड़े इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए फ़ंड देने का वादा किया है. यह प्रोजेक्ट 6.7 किलोमीटर लंबे पुल का है, जिसे ग्रेटर मेल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) के नाम से जाना जाता है.

12 अक्टूबर को भारत के एक्सपोर्ट इंपोर्ट बैंक ने जीएमसीपी के फ़ंड के लिए मालदीव के साथ 40 करोड़ डॉलर के क्रेडिट लाइन समझौते पर हस्थाक्षर किए. इसके साथ ही भारत ने 10 करोड़ डॉलर का अनुदान भी किया है.

मालदीव की न्यूज़ वेबसाइट Raajje.mv की 8 अक्टूबर की रिपोर्ट के मुताबिक़ ”मालदीव और भारत के ऐतिहासिक रिश्ते यामीन के शासन काल में काफ़ी ख़राब हो गए थे. हालांकि राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के नवंबर 2018 में सत्ता संभालने के बाद रिश्ते दोबारा पटरी पर लौटे हैं.”

विपक्ष की क्या प्रतिक्रिया है?

विपक्ष के प्रतिनिधियों ने मालदीव को भारत की ओर से दी जा रही मदद की आलोचना की है और इस मदद को स्वीकार करने पर सरकार से सवाल भी किए हैं. साथ ही भारतीय सैन्य अधिकारियों को मालदीव छोड़ने के लिए भी कहा.

पूर्व गृह मंत्री उमर नसीर ने एक सितंबर को आरोप लगाया कि भारतीय सैनिक मालदीव में एक पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में भी मौजूद थे, जिसे भारत की मदद से स्थापित किया गया है. धिवेही भाषा के दैनिक अख़बार मिहारू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, उन्होंने सरकार से यह स्पष्ट करने को भी कहा कि वो भारतीय सेना का कैंप नहीं है.

22 सितंबर को पीएनसी के उपाध्यक्ष मोहम्मद सईद ने कहा कि भारत की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की विदेश नीति मालदीव को ‘ग़ुलाम’ बनाने की है. वागुथू की रिपोर्ट के मुताबिक़, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राष्ट्रपति सोलिह ने ही यह नीति लागू करने की माँग की. न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक़, विपक्ष उस वक़्त मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों को हटाने की माँग को लेकर ”इंडिया आउट” नाम से अभियान चला रहा था.

हाल ही में वगाथू की रिपोर्ट के मुताबिक़, पूर्व मंत्री नसीर ने 18 अक्टूबर को आरोप लगाया कि मालदीव में मौजूदा समय में क़रीब 200 भारतीय सैनिक तैनात हैं.

क्या हैं आरोप-प्रत्यारोप?

स्थानीय मीडिया ने विपक्ष के आरोपों और सरकार की प्रतिक्रिया, दोनों को ख़ूब कवरेज दी है.

एक अक्टूबर को धिवेही भाषा में अवस न्यूज़ (Avas news) वेबसाइट पर छपे एक नज़रिया में सत्ताधारी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) की आलोचना करते हुए मालदीव में भारत की मौजूदगी के ख़िलाफ़ चेताया गया.

इस आर्टिकल में लिखा था, ”बहुत से लोगों का मानना है कि मालदीव बीते नौ सालों से भारतीय सैनिकों का स्थायी बेस बन गया है.”

आगे लिखा था, ”ऐसा कुछ जो मालदीव की स्वतंत्रता और संप्रभुता को प्रभावित करेगा, उसे मौक़ा नहीं दिया जाना चाहिए… ख़ासकर किसी दूसरे देश को मालदीव के बारे में कुछ कहने, मालदीव में अपनी सेना रखने का अवसर बिल्कुल नहीं देना चाहिए.”

मालदीव में विदेशी सैनिकों की मौजूदगी की आलोचना को लेकर डिफ़ेस फ़ोर्स के प्रमुख मेजर जनरल अब्दुल्ला शमाल ने छह सितंबर को कहा कि भारतीय सैनिक मालदीव में इसलिए तैनात हैं ताकि वो भारत सरकार द्वारा दिए गए हेलिकॉप्टर ऑपरेट कर सकें.

मिहारू न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक़, उन्होंने कहा कि मालदीव के विशेषज्ञ पायलट उपलब्ध नहीं थे और स्थानीय पायलटों को ट्रेनिंग देने के प्रयास किए जा रहे थे.

मालदीव में भारत के राजदूत संजय सुधीर ने भी 14 सितंबर को वागुथू को दिए एक इंटरव्यू में इन आरोपों को ख़ारिज किया कि भारत मालदीव पर क़ब्ज़ा करना चाहता है. उन्होंने कहा कि भारत और मालदीव के संबंध राष्ट्रपति सोलिह के सत्ता में आने के बाद बेहतर हुए हैं.

अब तक सरकार के शीर्ष चेहरों ने भारत की ओर से मिली मदद की प्रशंसा ही की है और धन्यवाद भी दिया है.

अगस्त में जब भारत ने बजटीय सहायता देने और जीएमसीपी के लिए फ़ंड देने की घोषणा की तो राष्ट्रपति सोलिह ने ट्विटर पर लिखा, यह ”मालदीव और भारत के बीच सहयोग का ऐतिहासिक क्षण” था.

रक्षा मंत्री मारिया दीदी ने एक सितंबर को ट्वीट किया, ”भारत एक मज़बूत और सशक्त साझेदार रहा है और इस महामारी के दौरान भी हमारा बहुत बड़ा सहयोग किया है.”

पार्लियामेंट के स्पीकर और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद लगातार विपक्ष और चीन के उनके समर्थन की आलोचना करते आ रहे हैं. सरकार ने मालदीव को भारत को ”बेच दिया”, इस दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए नाशीद ने एक सितंबर को कहा कि पूर्व राष्ट्रपति यामीन के चीन के साथ हुए समझौतों ने देश को चीन के ”कर्ज़ जाल” में फंसा दिया.

13 सितंबर को वागुथू न्यूज़ की रिपोर्ट में नाशीद के हवाले से लिखा गया कि ”इंडिया आउट” अभियान की तैयारी धार्मिक अतिवादी संगठनों ने की थी और विपक्षी पार्टियां पीपीएम और पीएनसी भी इसमें शामिल हो गईं.

15 सितंबर को अवस (Avas) की रिपोर्ट में विदेश मामलों के मंत्री अब्दुल्ला शाहिद के हवाले से लिखा गया कि मालदीव और भारत के रिश्तों की आलोचना इसलिए हो रही है क्योंकि विपक्ष देश में सरकार की ओर से लागू किए जा रहे विकास कार्यों को स्वीकार नहीं कर पा रहा.

20 अक्टूबर को अवस (Avas) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, एमडीपी पार्लियामेंट्री ग्रुप के नेता अली अज़ीम ने कहा कि भारत विरोधी अभियान चलाकर देश में ”तनाव का माहौल” लाने की कोशिश हो रही है, जिससे विपक्षी दलों के नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से जनता का ध्यान हट जाए.

क्या चीन विपक्ष की मदद कर रहा है?

सत्ताधारी एमडीपी ने चीन पर विपक्ष का समर्थन करने का आरोप लगाया है. छह सितंबर को अली अज़ीम ने राज्जे टीवी के एक प्रोग्राम में कहा कि चीन को विपक्ष को पैसे देकर मालदीव के राजनीतिक माहौल में उथल-पुथल पैदा करने की कोशिशें रोक देनी चाहिए.

पीएनसी के उप-प्रमुख आदम शरीफ़ उमर ने कथित तौर पर इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि विपक्षी गठबंधन किसी दूसरे देश की ”कठपुतली” नहीं है.

अवस (Avas) में पाँच सितंबर को छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, विपक्ष ने हालांकि चीन के साथ अपने संबंध बनाए रखने की कोशिशें की हैं. पीपीएम और पीएनसी ने पूर्व राष्ट्रपति यामीन को पाँच साल की जेल की सज़ा से बरी कराने को लेकर कथित तौर पर चीन सरकार के साथ बीजिंग में बातचीत की भी है.

















BBC

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *