गोड्डा. झारखंड के गोड्डा जिले (Godda) में स्वामी विवेकानंद अनाथ सेवा आश्रम की संचालिका बंदना दुबे का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. लेकिन अब वह किसी परिचय और पहचान की मोहताज नहीं है. मगर जीवन के शुरुआती दस-ग्यारह वर्षों का सफर जिस संघर्षपूर्ण स्थिति में बंदना ने बिताया, वो काफी ह्रदयस्पर्शी रहा.
बंदना के पिता चालक थे, जिन पर चार-चार बच्चों के परवरिश की जिम्मेदारी थी. पिता ने अपने रिश्तेदार के घर बच्चों को रखकर परवरिश किया. उसी दौरान उनके जीवन में एक नया मोड़ आया. बंदना ने मन में ये ठान लिया कि वह बच्चों के लिए कुछ करेंगी. उन्हें वह सब देंगी, जो खुद बंदना और उसके भाई-बहनों को बचपन में नहीं मिला. शुरुआती दौर में जब बंदना ने अनाथ बच्चों के परवरिश का जिम्मा उठाया तो लोगों ने पागल करार दिया. अपनों ने भी किनारा कर लिया. मगर सारी बाधाएं कदम-कदम पर बंदना के लिए प्रेरणा बनकर उर्जा का काम करती रही. वर्ष 2005 से 2016 तक के संघर्षपूर्ण जीवन में बिना किसी सरकारी मदद से बंदना ने 40 बच्चों के पालन पोषण किया. 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी के हाथों मानव सेवा पुरस्कार से नवाजी गयी. तब लोगों का नजरिया भी बदला और साथ ही अपनों ने भी बंदना का साथ देना शुरू किया.
बंदना 40 बच्चों की कुंवारी मां कहलाती हैं. सभी बच्चों को शिक्षा भी दे रही हैं. वहीं अपने बलबूते आगे बढ़कर बंदना उन स्थानों पर शिक्षण संस्थान की स्थापना करने की पहल कर रही हैं, जहां आज तक सरकारी निगाहें नहीं पहुंच पायी हैं.कोरोना काल के दौर में भी बंदना द्वारा किये गए सरहानीय कार्यों की प्रशंसा चारों ओर हुई. लॉकडाउन के समय उन्होंने बच्चियों और महिलाओं की चिंता करते हुए गांव-गांव जाकर सेनेटरी पैड का वितरण किया. इनकी ये पहल देखकर महागामा विधायक दीपिका पाण्डेय और अंतरराष्ट्रीय नेट बॉल खिलाड़ी ने भी साथ दिया.
बंदना के कार्यों की ख्याति सुन फ़रवरी माह में वर्तमान में झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रविन्द्रनाथ महतो स्वयं चलकर उनके आश्रम तक पहुंचे और प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां आकर आध्यात्मिक शान्ति मिली. बहरहाल बंदना के बढ़ते कदम उन्हें आसमान की बुलंदियों तक लेकर जाएं, ताकि वो आगे भी बच्चों और महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बनकर समाज में अलख जगाती रहें. नारी शक्ति की इस मिसाल को महिला दिवस पर सलाम!