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नैनीताल राजभवन: ब्रिटिश वास्तुकला की अद्भुत विरासत,सुंदर नजारे और ठंडी पवन लूट लेगी आपका मन

ByPrompt Times

Aug 12, 2021

भारत के इतिहास की तमाम प्रमुख घटनाओं के गवाह रहे समुद्र सतह से 6,785 फीट ऊँचाई पर स्थित इस राजभवन की नींव 27 अप्रैल 1897 को रखी गई थी और मार्च 1900 में यह  बनकर तैयार हुआ था।

12 अगस्त 2021 | नैनीताल में ब्रिटिश शासन की विरासत के रूप में मौजूद गौथिक वास्तुकला पर आधारित बेहद खूबसूरत प्राकृतिक परिवेश, चारों ओर हरियाली, शांत वादियों और ठंडी आबोहवा के बीच साक्षात प्रकृति की होड़ में बसा नैनीताल का राजभवन देश के सर्वश्रेष्ठ राजभवनों में तो शामिल है। वहीं अपने उत्तर भारत के श्रेष्ठतम और खूबसूरत गोल्फ कोर्स और जैव विविधता के चलते भी देश के दर्शनीय स्थानों में प्रमुख है।

भारत के इतिहास की तमाम प्रमुख घटनाओं के गवाह रहे समुद्र सतह से 6,785 फीट ऊंचाई पर स्थित इस राजभवन की नींव 27 अप्रैल 1897 को रखी गई थी और मार्च 1900 में यह बनकर तैयार हुआ था। ब्रिटिश शासकों की पसंदीदा गौथिक शैली में निर्मित इस भवन का आकार अंग्रेजी के ई शब्द जैसा है।

बड़ी-बड़ी गुम्बदनुमा आकृतियां, तीखी ढलान वाली छतें और चौड़ी घुमावदार सीढियां इस शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं। मुंबई के विक्टोरिया टर्मिनल, वीटी (अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनल) की रूपरेखा बनाने वाले वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवन ने ही इस राजभवन का डिजायन भी तैयार किया था।

इस भवन के निर्माण में नार्थ वेस्ट प्रोविंस के गवर्नर सर एंटोनी पैट्रिक मैकडॉनल और लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता एफओ ऑएरटेल की भी विशेष भूमिका रही। इसके निर्माण के बाद मैकडॉनल ही इस राजभवन में रहने वाले पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर भी बने।

वे 1900 से 1901 तक इस राजभवन में रहे। 220 एकड़ क्षेत्र में फैले 113 कमरों वाले इस राजभवन के परिसर में 45 एकड़ में 18 होल्स के ढलान वाले गोल्फ कोर्स भी बने हैं जो मैदानी गोल्फ कोर्स से अलग अनुभव देते हैं। इस कोर्स से बरसात के पानी की निकासी की तकनीक भी बेहद खास किस्म की है। इसके परिसर में एक स्विमिंग पूल भी बना है। राजभवन के बगीचों की सिंचाई के लिए नैनी झील से पानी लेने के लिए

एक विशेष पंप हाउस तल्लीताल में बनाया गया। 
देश दुनिया से आई बेहतरीन सामग्री और कारीगर

राजभवन के निर्माण में मिस्त्री पंजाब के रमगढ़िया सिख समुदाय के थे। उन्होंने इसके परिसर में एक गुरुद्वारा भी बनाया था जो नैनीताल का पहला गुरुद्वारा था। बाद में इसे अन्यत्र स्थापित किया गया। राजभवन में पत्थर का काम आगरा के और रंग-रोगन  स्थानीय कारीगरों ने किया। इसकी साज-सज्जा का काम लंदन की मैसर्स ‘मेपल एंड कम्पनी’ और कोलकाता की मैसर्सस ‘लैजर्स एंड कम्पनी’ ने किया।

निर्माण सामग्री के लिए स्थानीय पत्थर प्रयुक्त किये गए, इंग्लैंड से  शीशे और टाइल व कुछ लाल पत्थर आगरा से मंगवाए गए थे। इसके बरामदे और सीढ़ियों में मिर्जापुर से लाये गए पत्थरों का उपयोग किया गया। इसकी छत में रेवाड़ी स्लेट और सीढ़ियों व भोजन कक्ष की उल्टी छत में टीक की लकड़ी का उपयोग किया गया, जबकि कार्ड रूम की ऊपरी छत कश्मीर की लकड़ी से बनाई गई।
 
राजभवन के विभिन्न दरवाजों, खिड़कियों, बे विंडो, फर्नीचर आदि में शीशम, साटिन, साईप्रस और साल की लकड़ी का प्रयोग किया गया। इसके लिए पीतल और लोहे के नल इंग्लैंड से मंगवाए गए। सजावट के लिए कालीन फतेहपुर, आगरा और लखनऊ से मंगाए गए। इसकी दीवारों पर हाथी दांत लगाए गए। यूरोप से लाकर विभिन्न प्रजातियों के पेड़ भी यहां लगाए गए। तब इसके निर्माण में  साढ़े सात लाख रुपए की लागत आई थी। 1994 में राजभवन को आम लोगों के दर्शनार्थ भी खोल दिया गया। 

देश में वन महोत्सव की शुरुआत हुई इसी राजभवन से
भारत में वन महोत्सव की शुरुआत इसी राजभवन से हुई। इतिहासकार औरय पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत के अनुसार स्वतंत्रता के बाद 1950 में  तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री केएम मुंशी ने बांज का एक वृक्ष रोपकर इस महोत्सव की शुरुआत की थी। बांज का यह पेड़ आज भी यहां मौजूद है। 

इससे पहले विभिन्न भवन रहे राजभवन
नैनीताल में इस राजभवन से पहले दो राजभवन और भी रहे। अवध प्रांत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के बाद यहां 1862 में नार्थ वेस्ट प्रोविंस के गवर्नर के प्रवास की शुरुआत हुई। प्रो. रावत के अनुसार 1864 में स्टोनले परिसर में किराये पर राजभवन आवास लिया गया। 1865 में ड्रूमेड ने मालडन हाउस में राजभवन बनवाया। सर जॉर्ज कूपर ने सेंट लू (स्नोव्यू के निकट) में राजभवन बनवाया।

1880 के भूस्खलन में यह क्षतिग्रस्त हो गया तो उन्होंने यहीं पर नया राजभवन बनवाया। लेकिन इस क्षेत्र के भूस्खलन प्रभावित होने के बाद ब्रिटिश शासकों ने वर्तमान स्थल को इसके लिए चुना। तब खुर्पाताल, रूसी, ताकुला आदि क्षेत्रों से लोग अपने जानवर चराने यहां आते थे। इसे गायवाला खेत, बाद में गिवाली खेत, के नाम से जाना जाता था तब शेरवुड स्कूल भी यहीं स्थित था।

राजभवन के निर्माण के लिए डायोसेजन ब्वॉयज स्कूल और गिवाली खेत का क्षेत्र का कुछ भाग सरकार ने अधिगृहीत किया। स्कूल को इसके एवज में एक लाख रुपए दिये गए और बाद में इसे वर्तमान शेरवुड कॉलेज स्थल पर बनाया गया। इसके लिए डायोसेजन गर्ल्स स्कूल, सेंट मेरीज, चर्च ऑफ सेंट निकोलस और सेंट जोसेफ कॉलेज से भी भूमि ली गई।

संग्रहालय में रखे हैं सुल्ताना डाकू के हथियार
राजभवन में दुर्लभ और बेहद आकर्षक एंटीक फर्नीचर के साथ ही संग्रहालय में सुल्ताना डाकू के हथियार, भाले, तलवार आदि और पुराने समय के बर्तन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। 
 
आकृति बकिंघम पैलेस जैसी नहीं बलमोराल जैसी है 
इस राजभवन की निर्माण शैली तो निश्चय ही गौथिक है। सभी विद्वान और इतिहासकार भी इस बात पर एकमत हैं कि यह इंग्लैंड के लंदन के बकिंघम पैलेस की जैसी है और उससे बहुत ज्यादा मिलती-जुलती है। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि दोनों की तस्वीर अगल बगल रख कर देखें तो इनमें समानता नजर नहीं आती। जबकि इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ के स्कॉटलैंड स्थित समर पैलेस बलमोराल से यह बहुत ज्यादा मिलता जुलता है। एक बार को यह समर पैलेस की ही प्रतिकृति नजर आता है। पहले इस  राजभवन में भी बलमोराल जैसी ऊंची व तीखी ढलान वाली चिमनी नुमा मीनार लगी थीं तब यह हूबहू बलमोरल जैसा ही नजर आता था। बाद में उनके कारण यहां बिजली गिरने की कुछ घटनाओं के बाद इन्हें हटा दिया गया। भवन की मूल आकृति बलमोराल वाली ही है।

गोल्फ कोर्स में होती हैं गोल्फ प्रतियोगिताएं
यहां के खूबसूरत गोल्फ कोर्स में शौकिया गोल्फ खिलाड़ियों के लिए गवर्नर्स गोल्फ कप प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। उत्तराखंड राज्य की स्थापना के बाद से यह प्रतियोगिता बहुत लोकप्रिय हुई है। हॉफ कोर्स प्रबंधक कर्नल हरीश साह ने बताया कि कई मौकों पर इसमें विदेशी खिलाड़ी भी शामिल हुए हैं। वर्ष 2015 से यहां विद्यार्थियों के लिए भी एक टूर्नामेंट शुरू किया गया है।

जैव विविधता से भरपूर है परिसर
इस राजभवन परिसर में लगभग 8 एकड़ में भवन और बगीचे आदि हैं। 45 एकड़ में गोल्फ कोर्स, जबकि 160 एकड़ में घना जंगल है। प्रख्यात उद्घोषक हेमंत बिष्ट के अनुसार यहां बांज, तिलौंज, पुतली, देवदार, सुरई, अखरोट, चिनार सहित तमाम प्रजातियों के वृक्षों के अलावा बेहद दुर्लभ लिविंग फॉसिल माना जाने वाला जिंकोबा बाइलोबा वृक्ष भी है। यहां बार्किंग डियर, सांभर, पाम सिवेट कैट, घुरल, कलीज फेसेंट, कोलरस तीतर, हिमालयन ब्लू व्हिस्लिंग थ्रश, बारबेट, मैगपाई सहित दर्जनों प्रजातियों के प्रवासी पक्षी भी पाए जाते हैं। अनेक बार यहां भालू और गुलदार भी देखे जा चुके हैं।

राष्ट्रपति सहित आठ प्रधानमंत्री रह चुके हैं यहां
नैनीताल स्थित राजभवन में विभिन्न अवसरों पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु सहित लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, गुलजारी लाल नंदा, राजीव गांधी,  एचडी देवगौड़ा, अटल बिहारी बाजपेयी, मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी नेपाल के राजा त्रिभुवन वीर विक्रम शाह के अलावा तमाम राज्यपाल और विशिष्ट हस्तियां निवास कर चुकी हैं।

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