• May 14, 2024 5:54 am

संसद में पीएम मोदी की राम-राम…समझें इस संदेश के सामाजिक और राजनीतिक मायने

31जनवरी 2024
अयोध्या में भगवान रामलाल के प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लोगों को संबोधित करना शुरू किया तो राम-राम के संबोधन से किया और खत्म सियाराम से किया था. पीएम मोदी बुधवार को संसद के बजट सत्र से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए अपना संबोधन फिर से ‘राम-राम’ से किया. इस दौरान उन्होंने कहा, ‘आप सभी को 2024 की राम-राम.’ इस तरह पीएम मोदी ने अपनी बात शुरू और फिर खत्म करते समय फिर ‘राम-राम’ कहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह अनायास ही नहीं किया है, बल्कि उसके गहरे राजनीतिक और सामाजिक मायने भी हैं.

बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव को राम मंदिर मुद्दे के इर्द-गिर्द अपना एजेंडा सेट कर रही है. माना जा रहा है कि राम मंदिर का सियासी असर अप्रैल में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी दिखेगा. इन दिनों देश के गांव-गांव, गली-गली और शहर-शहर में अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर का मुद्दा छाया हुआ है. ऐसे में पीएम मोदी राम मंदिर आंदोलन के चिर-परिचित वाले नारे, जय श्रीराम के नारे को त्यागकर राम-राम को बार-बार दोहरा रहे हैं.

संसद में पीएम मोदी की राम-राम

पीएम मोदी ऐसे ही अपने संबोधन का आगाज ‘राम-राम’ से नहीं कह रहे हैं बल्कि सियासी दृष्टि से देखें तो ‘जय श्रीराम’ का सफर यहां से खत्म होता है और राम-राम के साथ आगे की यात्रा शुरू होती है. भगवान राम के नाम को समावेशी बनाने की है, क्योंकि गांवों में आज भी लोग एक दूसरे को राम-राम कहकर ही अभिवादन करते हैं. उत्तर भारत की लोकस्मृति में राम को याद करने के जो सहज और स्वाभाविक शब्द या शैलियां रही हैं, उसमें राम-राम, जय राम, जय-जय राम और या फिर जय सियाराम का रहा है.

राम के नाम से हिंदू समुदाय के लोग मुस्लिमों का भी अभिवादन करते रहे हैं, उसके जवाब में वो भी राम-राम कह कर ही अपना जवाब दिया करते थे. लेकिन, नब्बे के दशक में वीएचपी और बीजेपी ने राम मंदिर को लेकर आंदोलन शुरू किया तो ‘जय श्रीराम’ के नारे बुलंद किए जाने लगे. बीजेपी की रैलियों में भी ‘जय श्रीराम’ के नारे को उद्घोष किए जाने लगे और आज भी हो रहे हैं. हिंदू धार्मिक यात्रा और जुलूस में भी जय श्रीराम के नारे उदघोष किए जाते हैं. इस तरह से जय श्रीराम का नारा राजनीतिक नारा बन गया था जबकि राम-राम और जय सियाराम के नारे आपसी-भाईचारा और समावेशी है.

अयोध्या में 500 साल बाद राम मंदिर

वहीं, अयोध्या में अब जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है. भगवान रामलला पांच सौ साल के बाद अपने गर्भग्रह में विराजमान हो चुके हैं और उनकी प्राण प्रतिष्ठा भी हो चुकी है. राम मंदिर बनने से पहले तक जयश्रीराम के नारे से जो कुछ हासिल किया जा सकता था, वो किया गया. रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही आंदोलन का मकसद खत्म हो चुका है तो फिर से राम-राम पर लोटकर ही उन्हें समावेशीबनाने की कवायद शुरू हो गई.

पीएम मोदी के राम-राम से बार-बार संबोधन का मकसद राम को जनमानस तक पहुंचाने की है, ताकि दोबारा से राम के नाम को सर्व समाज के बीच स्थापित किया जा की, जो लोगों चेतना और व्यवहार का हिस्सा रहा है. अब एक ऐसे राम को आगे लेकर जाना है जो सबके हैं. पीएम मोदी ने अपने भाषण में ज़ोर देकर कहा भी कि राम हमारे ही नहीं बल्कि राम सबके हैं. पीएम इस बात को जानते हैं कि अब आगे एक बड़ी और समावेशी राजनीति तक के रास्ते जयश्रीराम से नहीं ले जा सकते हैं बल्कि राम-राम, जय सियाराम और जय-जय राम जैसे नारे और संबोधन से ही खोले जा सकते हैं. इस तरह समाज के सभी वर्गों के बीच भगवान राम को ले जाने की है.

‘राम विवाद नहीं, राम समाधान हैं’

पीएम मोदी ने प्राण प्रतिष्ठा के दौरान कहा था, ‘राम आग नहीं, राम ऊर्जा हैं. राम विवाद नहीं, राम समाधान हैं. राम सिर्फ हमारे नहीं हैं बल्कि राम तो सबके हैं. राम वर्तमान ही नहीं, राम अनंतकाल हैं. राम भारत की आस्था हैं, राम भारत का आधार हैं, राम भारत का विचार हैं, राम भारत का विधान हैं, राम भारत की चेतना हैं, राम भारत का चिंतन हैं, राम भारत की प्रतिष्ठा हैं, राम भारत का प्रताप हैं, राम प्रभाव हैं, राम प्रवाह हैं, राम नेति भी हैं, राम नीति भी हैं, राम नित्यता भी हैं, राम निरंतरता भी हैं, राम व्यापक हैं, विश्व हैं, विश्वात्मा हैं. इसलिए जब राम की प्रतिष्ठा होती है तो उसका प्रभाव शताब्दियों तक नहीं होता उसका प्रभाव हज़ारों वर्षों तक होता है.

पीएम मोदी ने बुलंद किया 400 पार का नारा

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 400 पार का नारा बुलंद किया है, जिसे राम के नाम से हासिल करना चाहती है. जाति के सहारे लोकसभा चुनाव की नैया पार करने की प्लानिंग कर रहे विपक्षी गठबंधन को बीजेपी के राम लहर पार्ट-2 से जूझना होगा. कांग्रेस शासित राज्यों में राहुल गांधी ने जातीय जनगणना कराने का वादा कर रहे हैं और अपनी न्याय यात्रा को इसी के इर्द-गिर्द रख रहे हैं. ऐसे में बीजेपी राममय माहौल बनाने में जुटी है.

आज की युवा पीढ़ी जिन्होंने 90 के दशक में राम रथयात्रा, राम मंदिर आंदोलन और बाबरी विध्वंस को नहीं देख सकी, वे नए वोटर राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के साक्षी बने. दिलचस्प बात यह है कि इन युवा पीढ़ियों को मंडल कमिशन लागू होने के बाद हुए आरक्षण आंदोलन की भनक तक नहीं है. ऐसे में पीएम मोदी राम मंदिर का उद्घाटन करने के साथ ही राम-राम कह कर अपना संबोधन शुरू कर दिया है ताकि सियासी समीकरण को साधा जा सके. राम को सिर्फ एक दायरे में सीमित करने से सियासी लाभ भी सीमित दायरे में होगा. इस तरह पीएम मोदी राम को जन-जन तक ले जाने चाहते हैं. इस तरह जातियों और धर्म के बीच यह पुल का काम करेगा और समाजों को एकसाथ बैठाने का जरिया बनेगा. इसके बाद ही 400 पार का लक्ष्य हासिल होगा?

स्रोत:- ” TV9 भारतवर्ष ”   

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