• April 28, 2024 4:28 am

एयरलाइन के दिवालिया होने के कारण

नवंबर  ! एयरलाइन सेक्टर इस समय बुरे दौर से गुजर रहा है जहां एक तरफ किंगफिशर एयरलाइंस और जेट एयरवेज डूब चुकी है वहीं दूसरी ओर बजट एयरलाइंस गो फर्स्ट के दिवालिया की खबर आ गई है, शुरुआती कुछ सालों में किंगफिशर एयरलाइंस ने मोटा मुनाफा कमाया और कर्ज में डूबी एयर डेकर को साल 2008 में खरीद लिया । साल 2011 में घरेलू उड़ानों के मामलों में किंगफिशर की दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी थी किंगफिशर की बर्बादी की शुरुआत डेकर की खरीद से ही हुई ।
2008 में एयर डेकर खरीदने के बाद कर्ज का बोझ साल दर साल बढ़ता गया और कच्चे तेल की कीमत में हुई बढ़ोतरी ने कंपनी को घुटने के बल गिरा दिया । वहीं जेट एयरलाइंस की शुरुआत मुनाफा कमाते हुए भारतीय एयरलाइंस में सबसे ऊंची उड़ान भरी , पर एक गलत फैसले ने इसकी परेशानियों को एक गलत फैसले ने इसकी परेशानियों का जमावड़ा लगा दिया और वह फैसला था अंतरराष्ट्रीय उड़ान शुरू करना ।

गो फर्स्ट की कहानी इन दो कंपनियों के कहानी से अलग नहीं है गो फास्ट भारत में बंद होने वाली पहली निजी एयरलाइंस नहीं है भारतीय उद्दान क्षेत्र में पिछले कई सालों में एयरलाइन या तो कारोबार से बाहर हो जाती है या भारी नुकसान उठाने से किसी दूसरी विमान कंपनी द्वारा खरीदी जाती है । लंबे समय तक एयर इंडिया के वित्तीय अधिकारी रहे राजराजेश्वर रेड्डी कहते हैं कि एयरलाइंस दिवालिया होने के मामले में भारत विमान कंपनियों का कब्रिस्तान है
भारत में एयरलाइंस को सामान्य कुप्रबंधन के अलावा कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है हमने यह जानने की कोशिश की है कि भारत में एयरलाइंस इस तरह संकट में क्यों है

विमान परिचालन लागत का एक बड़ा हिस्सा एटीएफ है पिछले पिछले कई वर्ष में एटीएफ की कीमत में लगभग 60 से 70% की अमूर्त पूर्व वृद्धि हुई है एटीएफ में उतार-चढ़ाव का मतलब है व्यापार में हमेशा अस्थिरता रहना। एटीएम की कीमतों में बेतहाशा उछाल एयरलाइंस को बर्बाद कर सकती है,भारत में एटीएम पर भारी कर लगाया जाता है राज्य मूल्य वर्धित कर लगाते हैं जो 30% तक होता है हालांकि बहुत से राज्यों ने वेट घटाया है एटीएम को जीएसटी तहत लाने की कोशिश की जा रही है वही दूसरा कारण डॉलर के दाम में उछाल भी एयरलाइंस के लिए लागत बढ़ता है तब जब रुपए में डॉलर के मुकाबले गिरावट आती है तो संचालन की दैनिक लागत कम हो जाती है मांग में उतार-चढ़ाव पूरी दुनिया में विमान व्यवसाय में एक बड़ी चुनौती है उतार-चढ़ाव के बदलाव एयरलाइन व्यवसाय के साथ तबाही लेकर आता है तो वही मांग भी अपना असर दिखाती है और जब मांग कम होती है तब भी एयरलाइंस को सभी कर्मचारियों को वेतन देना पड़ता है विशेष रूप से पायलट का वेतन अत्यधिक होता है विमान उद्योग की रंगिनि कॉस्ट बहुत ज्यादा होती है, टाटा एयर इंडिया के साथ लॉजिस्टिक डिपार्टमेंट में अतिरिक्त निदेशक के रूप में काम करने वाले प्रतीक भट्ट कहते हैं कि नए विमान को खरीदने की प्रक्रिया से लेकर रखरखाव तक कई चरण होते हैं विमान के लिए आर्डर देते समय एक एयरलाइंस को भविष्य की मांग के बारे में अच्छी जानकारी होनी चाहिए अगर विमान की डिलीवरी वर्षों बाद होती है तो कम मांग होने पर भी एयरलाइंस को भुगतान करना होगा और जब विमान ग्राउंडेड होते हैं तो भी उन पर अधिक खर्च होता है क्योंकि उन्हें नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है और जब मांग बढ़ती है तब किसी एयरलाइन के पास पर्याप्त विमान नहीं होते हैं तो उच्च लागत पर उन्हें पट्टे पर देना पड़ता है, हवाई अड्डे की लागत भी अधिक होती है विशेष रूप से कम लागत वाली क्योंकि भारत में घरेलू एयरलाइंस के लिए बहुत अधिक सस्ते हवाई अड्डे नहीं है।

विमान एक ऐसा क्षेत्र है जिसे सरकार द्वारा भी नियोजित किया जाता है क्योंकि भारत सरकार खुद एक अंतरराष्ट्रीय और घरेलू वाहक, एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का संचालन करती थी इसीलिए इसकी नीतियों को अक्सर उन एयरलाइंस के लिए अधिक अनुकूल माना जाता था जबकि निजी एयरलाइंस के लिए कहानी अलग है इसके अलावा सरकार ही हवा हवाई किराया को तय करती है और अक्सर एयरलाइंस को एक निश्चित मूल्य पर टिकट बेचने के लिए बाधित किया जाता है इससे विमान कंपनी को नुकसान होता है।

HIMANI THAKUR

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