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स्कूल खुल गए फिर बच्चों को भेजने से क्यों कतरा रहे माता-पिता

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Feb 10, 2021
स्कूल खुल गए फिर बच्चों को भेजने से क्यों कतरा रहे माता-पिता
  • “बच्चे को स्कूल भेजना चाहते हैं लेकिन कोरोना का डर भी है”
  • “क्या बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रख पाएंगे?”
  • “क्या बच्चों को कोरोना की वैक्सीन लगवाने के बाद ही स्कूल भेजें?”

ऐसे कई सवाल हैं जिनसे आजकल लगभग हर माता-पिता जूझ रहे हैं. कई राज्यों में सरकार ने स्कूल खोलने के आदेश दिए हैं लेकिन अब अभिभावकों को बच्चों को स्कूल भेजने का फ़ैसला लेना है.

बीते साल मार्च में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था और सभी स्कूल बंद कर दिए गए थे.

इस दौरान बच्चों की पढ़ाई पर असर न पड़े इसलिए ऑनलाइन क्लासेस के ज़रिए एक नई तरह की व्यवस्था बनी और बच्चों ने पाठ्यक्रम की अपनी पढ़ाई जारी रखी. लेकिन, अब कुछ राज्यों में नौवीं कक्षा से तो कुछ में छठी कक्षा से स्कूल खुल रहे हैं.

राजधानी दिल्ली में नौवीं से 12वीं तक की कक्षाओं के लिए स्कूल खुल चुके हैं. राजस्थान और बिहार में आठ फरवरी से छठी से आठवीं कक्षा तक के स्कूल खुल गए हैं. उत्तर प्रदेश में दस फरवरी से छठी से आठवीं तक और एक मार्च से पहली से पांचवी तक की कक्षा के छात्रों के लिए स्कूल खुलेंगे.

पंजाब में प्राथमिक कक्षाएं और नौवीं से 12वीं तक की कक्षाएं खुल चुकी हैं. महाराष्ट्र में कुछ शहरों में पांचवी से 12वीं तक स्कूल खुल चुके हैं. हालांकि मुंबई में अभी स्कूल नहीं खुले हैं. वहीं तमिलनाडु में 10वीं और 12वीं की कक्षाएं पहले ही खुल चुकी हैं और आठ फरवरी से नौवीं और ग्यारहवीं की कक्षाएं खोली गई हैं.

इनके अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल और केरल और अन्य दूसरे राज्यों में स्कूल खुल चुके हैं या जल्द ही खुलने वाले हैं.

क्या है माता-पिता की उलझन
कोरोना वायरस संक्रमण के मामले आना कम ज़रूर हुए हैं, लेकिन पूरी तरह ख़त्म नहीं हुए हैं. ऐसे में बच्चों को सुरक्षित रखने की माता-पिता की चिंता भी बढ़ गई है.

बच्चे अब तक घर के सुरक्षित माहौल में थे लेकिन अब उन्हें अन्य बच्चों के बीच भेजना और उन्हें संक्रमण से बचाए रखना अभिभावकों के लिए बड़ी चुनौती है.

दिल्ली की रहने वाली रेखा गोसांई के बच्चे सरकारी स्कूल में नौवीं और छठी कक्षा में पढ़ते हैं. उनके बड़े बेटे ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है.

रेखा कहती हैं, “इतने महीनों तक बच्चे घर पर थे. अब उन्हें स्कूल भेजने में डर लगता है. स्कूल में बच्चों को एकदूसरे से दूर बिठाया जाता है लेकिन बच्चे तो दोस्तों में घुलमिल जाते ही हैं. इसलिए मैंने अपने बेटे को समझाया है कि दूसरों के साथ खाना-पीना नहीं है. केवल घर से लिया लंच ही खाना है.”

हरीश सिंह के बच्चे दिल्ली में एक निजी स्कूल में पढ़ते हैं. उनके लिए सबसे बड़ी समस्या बच्चों को वैन में भेजना है.

वह कहते हैं, “मेरा एक बेटा छठी क्लास में पढ़ता है और वैन से स्कूल जाता है. वैन में और भी बच्चे होते हैं. स्कूल में तो सोशल डिस्टेंसिंग होती है लेकिन वैन में कैसे हो पाएगी. हालांकि, ये भी सही है कि बच्चों को फिर से स्कूल के माहौल की ज़रूरत है क्योंकि घर पर रहकर पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती.”

दिल्ली ही नहीं अन्य राज्यों में भी माता-पिता की स्थिति कुछ ऐसी ही है. सरकार ने माता-पिता की सहमति से बच्चे को स्कूल भेजने का नियम बनाया है. लेकिन, माता पिता के लिए ये फ़ैसला लेना मुश्किल हो रहा है.

ग्रामीण इलाक़ों की स्थिति
ग्रामीण इलाक़ों की बात करें तो जयपुर ग्रामीण में बस्सी के राजकीय विद्यालय में सातवीं कक्षा के छात्र अभिनव शर्मा उत्साहित हैं कि वो फिर से स्कूल जा पाएंगे.

उनके पिता मनीष शर्मा ने बताया कि जनवरी में ही पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग बुलाई गई थी, तब स्कूल खुलने की संभावनाएं जताते हुए दिशानिर्देशों के अनुसार ही बच्चों को भेजने पर चर्चा हुई थी.

टोंक ज़िले के सीतारामपुरा राजकीय विद्यालय के प्रधानाध्यापक कांता प्रसाद बारेठ का कहना है कि स्कूल भवन और बच्चों के बैठने के सुविधानुसार ही बच्चों को बुलाया जा रहा है.

वह बताते हैं, “ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावक ख़ुद चाहते हैं कि बच्चों की पढ़ाई शुरू हो. इसलिए बच्चे ज़्यादा संख्या में आ रहे हैं. बच्चों के बैच बना कर स्कूल आने के लिए उनके दिन निर्धारित कर दिए हैं.”

सीतारामपुरा के इस स्कूल में पढ़ने वाले दसवीं के छात्र विशाल मीना की मां संपत मीना बताती हैं “बच्चे एक दिन छोड़ कर एक दिन स्कूल जा रहे हैं. बच्चे का खाना और पानी घर से ही दे रहे हैं. उन्हें मास्क और सैनिटाइज़र भी दे रहे हैं.”

बिहार में छठी से आठवीं कक्षा तक के स्कूल खुल गए हैं. छठी कक्षा के बच्चे नौवीं या बारहवीं कक्षा के बच्चों के मुक़ाबले कम समझदार होते हैं. ऐसे में उन्हें महामारी के बारे में और अपने दोस्तों से दूर रहने के बारे में समझाना और बड़ी चुनौती हो सकती है.
इस डर के चलते पटना की वंदना कुमारी अपने बेटे को स्कूल नहीं भेजना चाहतीं. वह कहती हैं, “मेरे लिए बच्चे का जीवन बड़ा है. बच्चे का एक साल छूट जाए, कोई बात नहीं लेकिन मैं कोरोना ख़त्म होने तक अपने बेटे को स्कूल नहीं भेजूंगी.”

लेकिन पटना की ही रहने वाली रश्मि झा इसे अलग तरीके से देखती हैं. वह कामकाजी महिला हैं और उनकी दो बच्चियां हैं.

वह कहती हैं, “मैं अपनी बच्ची की कांउसलिंग करके उसे स्कूल भेजूंगी, लेकिन मैं ये भी चाहती हूं कि स्कूल भी सख़्त निगरानी रखे. साफ़-सफ़ाई ख़ास तौर पर टॉयलेट की सफाई पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए.”

स्कूलों का दबाव
हालांकि, ऐसी बातें भी कही जा रही हैं कि कुछ स्कूल माता-पिता पर दबाव डाल रहे हैं.

इंडिया वाइड पेरेंट एसोसिएशन की अध्यक्ष अनुभा सहाय ने बताया कि उनके पास महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि अन्य जगहों से माता-पिता की शिकायतें आ रही हैं कि स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास बंद कर दी है और वो ज़बरदस्ती बच्चों को स्कूल में आने के लिए कह रहे हैं, जबकि सरकार ने इसके लिए माता-पिता की सहमति को अनिवार्य कहा है.

वह कहती हैं, “अभी बच्चों के लिए कोरोना की वैक्सीन नहीं आई है और संक्रमण के मामले भी आ रहे हैं. ऐसे में ऑनलाइन क्लास तो जारी रखनी होगी. हम इस बारे में राज्य सरकार को भी अवगत करा रहा हैं. मेरा सवाल ये भी है कि जब पिछला सत्र ख़त्म ही होने वाला है तो अभी बच्चों को स्कूल क्यों बुलाया जा रहा है. उन्हें अगले सत्र से ही स्कूल खोलने चाहिए.”

स्कूलों के सामने चुनौतियां
स्कूल शुरू होने के आदेश के बाद अगली बड़ी जिम्मेदारी स्कूलों पर भी आ जाती है. उन्हें बच्चों को सुरक्षित माहौल प्रदान करना है और माता-पिता को भी भरोसा दिलाना है.

लेकिन, बच्चों की संख्या, उनका घुलना-मिलना, ट्रांसपोर्ट और साफ-सफाई ऐसी चुनौतियां हैं जिनका स्कूलों को सामना करना है.

ग्रेटर नोएडा वेस्ट में स्थित सर्वोत्तम इंटरनेशनल स्कूल की डायरेक्टर प्रिसिंपल डॉ. प्रियंका मेहता बताती हैं, “एक स्कूल के तौर पर हमारे सामने चुनौती ये होगी कि बच्चों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग कैसे बनाए रखनी है. इसके लिए हमने पहले बच्चों को कुछ घंटों के लिए बुलाया है ताकि उन्हें नए माहौल की आदत पड़ जाए.”

“दूसरी चुनौती ये है कि बच्चों को संक्रमण का ख़तरा सिर्फ़ शिक्षकों से ही नहीं है बल्कि सहायक स्टाफ़ से भी है. हमें सहायक स्टाफ़ को भी सोच-समझकर बुलाना होगा और उनकी जांच करानी होगी. हर एक स्कूल का अपना फॉर्मूला होगा, उनकी अपनी तैयारियां होगी क्योंकि हर स्कूल में बच्चों की संख्या अलग होती है, उनके सामने संसाधन अलग होते हैं.”

सरकारी स्कूलों के लिए एक बड़ी समस्या बच्चों की संख्या है. सरकारी स्कूलों में एक क्लास में 60-70 बच्चे होते हैं. ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन बड़ी चुनौती साबित हो सकता है.

दिल्ली के जहांगीरपुर में ‘के ब्लॉक’ स्थित गवर्नमेंट गर्ल्स सीनियर सैकेंडरी स्कूल की प्रमुख बेला जैन बताती हैं कि बच्चों की संख्या को देखते हुए 15-15 बच्चों के बैच बनाए गए हैं.

उन्होंने बताया, “हम हर बैच को अलग-अलग दिन बुलाते हैं. हम ये भी योजना बना रहे हैं कि एक बैच बुलाकर तीन-चार पीरियड लेंगे और उसके बाद दूसरे बैच का समय रखेंगे. अभी ये भी सहुलियत है कि सभी क्लासेज़ शुरू नहीं हुई हैं इसलिए हमारे ज़्यादा पास कमरे हैं. इसके अलावा शौचालय के बाहर भी स्टाफ़ बैठाकर बच्चों के हाथ सैनेटाइज़ किए जा रहे हैं.”

वह कहती हैं कि इस समय स्कूल शुरू करना इसलिए भी ठीक है ताकि कम बच्चों के साथ हम आगे के लिए एक व्यवस्था तैयार कर सकें और जब बच्चे पूरी संख्या में आएं तो बच्चे, माता-पिता और स्कूल सभी इसके लिए तैयार हों.

माता-पिता से चर्चा
पुणे में यूरोस्कूल की प्राध्यापिका सीमा बहुखंडी कहती हैं कि स्कूलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम माता-पिता को भरोसा दिलाना है कि उनके बच्चे सुरक्षित रहेंगे.

वह कहती हैं, “स्कूल कुछ भी करता है तो उसके लिए अभिभावकों का साथ बहुत है. उनके बिना हम कुछ नहीं कर सकते. यहां माता-पिता की पेरशानी परिवहन को लेकर भी थी. सार्वजनिक वाहन या वैन से भेजने में उन्हें डर था और काम पर जाने के कारण वो रोज़ ख़ुद बच्चों को स्कूल भी नहीं छोड़ सकते थे. इसलिए हमने स्कूल के ट्रांस्पोर्ट की व्यवस्था को और बेहतर किया है. बसों को समय-समय पर सैनिटाइज़ करने की भी योजना बनाई है.”

प्रियंका मेहता का भी मानना है कि इस समय माता-पिता उलझन में हैं कि वो सिस्टम पर भरोसा करें या ना करें. माता-पिता को लगता है कि कोरोना की वैक्सीन लगाने के बाद वो बच्चों को स्कूल भेजें लेकिन अभी बच्चों के लिए वैक्सीन को मंजूरी मिली नहीं है.
उन्होंने बताया, “हमने माता-पिता को बुलाया है कि आप खुद आकर हमारी तैयारी देखें कि हमने किस तरह से क्लासरूम तैयार किया है और सैनेटाइनज़ेशन के इंतजाम किये हैं. स्कूलों को लगातार अपने प्रयास जारी रखने होंगे तभी माता-पिता का भरोसा बना रह पाएगा.”

  • ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों एक साथ

सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के मुताबिक़ बच्चों को स्कूल बुलाने के लिए माता-पिता की सहमति ज़रूरी है. लोगों के पास ये विकल्प है कि वो अपने बच्चों को स्कूल भेजें या नहीं. ऐसे में सभी बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं लेकिन स्कूल को तो सभी को पढ़ाना है.

प्रियंका मेहता ने बताया, “फिलहाल सभी बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं. ऐसे में स्कूल को ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों की तरह क्लासेज़ की व्यवस्था करनी होगी. ये देखना होगा कि एक ही समय पर शिक्षकों को कैसे मैनेज करें कि वो ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों कक्षाएं स्कूल से ही लें.”

बेला जैना भी कहती हैं कि ये सही है कि सभी बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं. इसलिए शिक्षक व्हाट्सऐप ग्रुप में लिंक्स भेजकर स्कूल ना आने वाले बच्चों को पढ़ा रहे हैं. जो बच्चे पढ़ाई में थोड़े बेहतर वो भी दूसरे बच्चों की मदद कर रहे हैं.

बच्चों के साथ बरतें संयम
कोरोना वायरस के डर के अलावा बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण मसला नई दिनचर्या का भी है. जब से कोरोना महामारी शुरू हुई है बच्चों की दिनचर्या बदल गई है. ऐसे में फिर से स्कूल के माहौल में सामंजस्य बैठाने में उन्हें वक़्त लग सकता है.

ऐसे में डॉक्टर कहते हैं कि बच्चों के साथ थोड़ा धीरज रखना होगा. मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में मेंटल हेल्थ एंड बिहेव्यिरल साइंसेज में सीनीयर कंसल्टेंट डॉक्टर दीपाली बत्रा कुछ बातों का ध्यान रखने की सलाह देती हैं-

स्कूल जाने के लिए बच्चों को जल्दी उठना होगा और फिर जल्दी सोना भी होगा. इसलिए ये ना सोचें की स्कूल खुलने पर अपने आप रूटीन बदल जाएगा. पहले से ही इसमें बदलाव लाने की कोशिश करें.
लगभग एक साल से बच्चे घर से सहज माहौल में अपने माता-पिता के साथ क्लास कर रहे थे. लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा तो उनकी तरफ से कुछ आनाकानी देखने के मिल सकती है. ऐसे में आनेवाले वक्त में बच्चों में व्यवहार संबंधी परेशानियां, चिड़चिड़ापन और भावनात्मक मुश्किलें भी देखने को मिल सकती है. इसलिए माता-पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वो थोड़ा संयम बरतें.
महामारी के कारण बच्चों की पढ़ाई का तरीका बदल गया है. उन्होंने लिखना कम कर दिया है जो कि स्कूल में ज़रूरी होता था. ऐसे में स्कूल खुलने से पहले ही इस पर काम करना शुरू कर देना चाहिए.
बीते कुछ महीनों से बच्चे तकनीक का (फ़ोन, लैपटॉप, कंप्यूटर) का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं, इस पर भी नियंत्रण करना होगा.
माता-पिता बच्चों के लिए लंच घर से बना कर भेजें. साथ ही उसके बैग में सैनिटाइज़र और मास्क भी रखें.
बच्चों को समझाकर कोविड-19 से सावधानी के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा. उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग, साफ-सफाई और खाने की शेयरिंग को लेकर समझाना भी ज़रूरी होगा.
बच्चे अपने आसपास के माहौल से ही सीखते हैं. अगर उनके स्कूल और घर में कोरोना को लेकर सावधानी बरती जाती है तो वो भी उससे सीखेंगे. अगर घर में लोग लापरवाह हैं तो बच्चे को भी उसकी गंभीरता समझ नहीं आएगी.
स्कूल में होने वाली पढ़ाई की अपनी अहमियत है और माता-पिता व स्कूल की चिंताएं और डर अपनी जगह है. ऐसे में दोनों बातों का ध्यान रखते हुए ही आगे कदम बढ़ना होगा.

BBC

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