• May 19, 2024 7:41 am

पाकिस्तान में हिंसा : दीवार पर लिखी है इबारत

12 मई 2023 ! सारी दुनिया ये देख कर हैरान है कि जिस फौज का पाकिस्तान में खौफ था, लोग उस पर हमला कर रहे हैं. लोग जानते हैं कि इमरान खान की गिरफ़्तारी फौज और आई. एस. आई. का काम है.  मुझे लगता है कि पाकिस्तान में फौज, आई. एस. आई . और शहबाज़ शरीफ की सरकार ने इमरान खान को पाकिस्तान में एक बार फिर हीरो बना दिया है. जब इमरान खान प्रधानमंत्री थे, तो लोग उनसे नाराज रहते थे, वो जनता से किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाए थे. उन्होंने भी सत्ता  में आने से पहले बड़ी बड़ी बातें की थी. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को लेकर बेसिर पैर की तरक़ीबें बताई थी, भ्रष्टाचार दूर करने के वादे किए थे, लेकिन ये सब कुछ करना पाकिस्तान में व्यावहारिक रूप से संभव नहीं था. इसलिए प्रधानमंत्री के तौर पर इमरान खान असफल होते दिखाई दे रहे थे. अगर वो सरकार में बने रहते, तो शायद अगला चुनाव न जीत पाते. लेकिन पाकिस्तान में बड़े सियासी फैसले जनमत के दम पर नहीं होते.  न तो इमरान खान का तख्ता पलटने का फैसला सियासी तौर पर सही था, और न ही उन्हें उठा कर जेल में पटकने का फैसला सही है.

इमरान खान सरकार से हटने के बाद पब्लिक के बीच उतरे और सही मायने में लीडर बने. गिरफ्तार होने से पहले उन्होंने वीडियो में जो कहा, वो बात पाकिस्तान के लोगों के दिलों में उतर गई. लोग इमरान खान के लिए मरने मारने को तैयार हो गए. इस एक वीडियो ने इमरान को पाकिस्तान का मसीहा बना  दिया. पाकिस्तान की सड़कों पर उतरे लाखों लोग इसका सबूत हैं. जो लोग फौज से टकराने को तैयार हों, जिनके चेहरों पर कोई खौफ न हो, वे सब लोग आने वाले वक्त में इमरान के लिए बहुत बड़ी ताकत बन जाएंगे. ये लोग आने वाले दिनों  में इमरान खान के बहुत काम आएंगे, और अचरज  की बात ये है कि ये बात न तो पाकिस्तान की फौज को दिखाई दे रही है और न सरकार में बैठे शहबाज शरीफ और उनके दोस्तों को.
कर्नाटक के मामले में ये कहना मुश्किल है कि एग्ज़िट पोल कितने सही साबित होंगे. जब किसी चुनाव में कांटे की टक्कर होती है, तो, किसी के लिए भी अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है. 2018 में भी कर्नाटक में कांटे की टक्कर थी, किसी को बहुमत नहीं मिला था और सारे ओपिनियन पोल ग़लत साबित हुए थे. इस बार भी ऐसा हो, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. हालांकि, इस बार के चुनाव में कुछ बातें नई हैं. एक तो पहले जेडी(एस) बड़ा फैक्टर होती थी, मुकाबले त्रिकोणीय होते थे, इस बार वो इतना बड़ा फैक्टर नहीं है. इस बार ज़्यादातर सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस की टक्कर है.पिछली बार के मुक़ाबले, कांग्रेस में इस बार बदलाव दिखाई दिया. इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने नेताओं की आपसी लड़ाई को ठीक से मैनेज किया. लेकिन, बीजेपी इस बार अपने नेताओं को मैनेज नहीं कर पाई.. उसकी लड़ाई खुलकर सामने आई.. दूसरी बात, कांग्रेस का नज़रिया पहले ही दिन से साफ था कि स्थानीय मुद्दों पर  चुनाव लड़ना है. कांग्रेस में, शुरुआती दौर में कोई भ्रम नहीं था. लेकिन, बाद के दौर में बीजेपी ने बाज़ी पलटी.  जैसे ही कांग्रेस ने PFI और बजरंग दल को एक ही तराजू में तोलने की ग़लती की, चुनाव में बजरंग बली की एंट्री हुई और कांग्रेस बुरी तरह कनफ्यूज़ हुई. चुनाव का मुख्य मुद्दा बदल गया.
सोर्स :-” इंडिया TV ”              

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