• April 28, 2024 5:47 am

दुनिया में विवाह की उम्र पर क्या है कानून? यहां जानिए

17 दिसंबर 2021 | वर्ष 1891 से पहले भारत में महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की कोई उम्र निर्धारित नहीं थीं. इसी वजह से तब देश में बाल विवाह काफी प्रचलित था और पढ़े लिखे लोग भी इसे बुरा नहीं मानते थे. 

  • अंग्रेजों ने बनाए बाल विवाह को रोकने के लिए कानून
  • नेहरू ने वापस लिया था हिंदू कोड बिल
  • मुस्लिमों पर लागू नहीं होता शादी की उम्र का बिल
  • नई दिल्ली: वर्ष 1891 से पहले भारत में महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की कोई उम्र निर्धारित नहीं थीं. इसी वजह से तब देश में बाल विवाह काफी प्रचलित था और पढ़े लिखे लोग भी इसे बुरा नहीं मानते थे. उदाहरण के लिए वर्ष 1883 में जब भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर का विवाह मृणालिनी देवी से हुआ, तब उनकी उम्र तो 20 वर्ष थी लेकिन उनकी पत्नी सिर्फ 10 साल की थी.

अंग्रेजों ने बनाए बाल विवाह को रोकने के लिए कानून

भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार पहली बार वर्ष 1891 में एक कानून लाई थी. इस कानून के तहत ये निर्धारित किया गया कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल या उससे कम उम्र की लड़की से शादी करता है तो उस पर रेप जैसे मामलों की कानूनी धारा लगाई जाएगी. इसके बाद वर्ष 1929 में ब्रिटिश सरकार एक और कानून लाई और इस उम्र को 12 वर्ष से 16 वर्ष कर दिया गया. जबकि पुरुषों की विवाह के लिए कानूनी उम्र 18 वर्ष तय की गई. इस कानून के बाद देश को आजादी मिलने तक इसमें कोई बदलाव नहीं आया. 

नेहरू ने वापस लिया था हिंदू कोड बिल

वर्ष 1951 में पहली बार देश के पहले कानून मंत्री डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल संसद में पेश किया, जिसे नेहरू ने पहले लोक सभा चुनाव की वजह से वापस ले लिया. उस समय नेहरू पर ये आरोप लग रहे थे कि जब देश धर्मनिरपेक्ष है, यहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोग रहते हैं, तो फिर विवाह, तलाक और सम्पत्ति बंटवारे के मामलों के लिए कानून सिर्फ हिन्दू के लिए ही क्यों बनाया जा रहा है. उस समय इस बिल के तहत हिन्दू लड़कियों की शादी की उम्र 16 से 18 और लड़कों की उम्र 18 से 21 तय की गई थी. नेहरू उस समय तो चुनाव की वजह से कानून नहीं लाए लेकिन सरकार बनने के बाद उन्होंने इस बिल को अलग-अलग टुकड़ों में पास कराने का काम किया. जबकि मुस्लिम समुदाय के लिए कोई कानून बना ही नहीं. उनके लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) ही लागू रहा और ये आज तक लागू है और इसके तहत 15 साल की लड़की शादी योग्य है. ऐसा मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से है.

इसलिए जरूरी है यूनिफॉर्म सिविल कोड?

वर्ष 1978 में जब तत्कालीन सरकार ने चाइल्ड मैरिज एक्ट (Child Marriage Act) में संशोधन किया था, तब इस एक्ट में जानबूझकर ये स्पष्ट नहीं किया गया कि ये कानून मुस्लिम और ईसाई धर्म के पर्सनल लॉज (Personal Laws) पर भी प्रभावी होगा या नहीं. इसी वजह से अब भी कई मामले कोर्ट में जाते हैं और हर कोर्ट ने इस पर अलग-अलग टिप्पणी की है. लेकिन जो बड़ी बात आपको समझनी है, वो ये कि महिलाओं के बारे में बातें तो सभी सरकारों ने बड़ी-बड़ी कीं, लेकिन उनकी समस्याओं और मांगों को हमेशा वोट के चश्मे से ही देखा गया. यानी मुस्लिम तुष्टिकरण की तरह महिला तुष्टिकरण का कार्ड भी खूब चला. इससे आप समझ सकते हैं कि हम देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) की मांग क्यों करते हैं. सोचिए जब देश एक है, संविधान सभी धर्मों को एक मानता है तो फिर कानून अलग अलग क्यों हैं?

विवाह की उम्र को लेकर दुनिया के दूसरे देशों में क्या व्यवस्था है?

  • दुनिया में आज भी 99 देश ऐसे हैं, जहां लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाता है.
  • दुनिया के दो देश ऐसे भी हैं, जहां विवाह की न्यूनतम उम्र आज तक तय नहीं हो पाई है. ये देश हैं सऊदी अरब और यमन. इसे आप इस तस्वीर से भी समझ सकते हैं, जो यमन की है. वहां 40 साल के एक पुरुष ने 8 वर्ष की बच्ची से शादी की थी.
  • इसी तरह लेबनान में 9 साल, सुडान में 11 साल, ईरान में 13 साल, कुवैत में 15 साल और पाकिस्तान में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र केवल 16 साल है. दुनिया में कुल 23 देश ऐसे हैं, जहां लड़कियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है.
  • ब्रिटेन में ये कानून है कि वहां असाधारण परिस्थितयों में लड़की की 16 वर्ष की उम्र में भी शादी हो सकती है.
  • इसके अलावा अमेरिका में कोई एक कानून नहीं है. वहां अधिकतर राज्यों में लड़कियां 18 साल के बाद ही शादी कर सकती हैं. हालांकि वहां भी असाधारण परिस्थितियों में 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों की शादी को मान्यता मिल सकती है.

Source;- “जी नेवस”

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