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2 अप्रैल 2022 | सरगुजा जिले के मुख्यालय अंबिकापुर के पूर्वी पहाड़ी पर प्राचीन महामाया देवी का मंदिर स्थित है। इन्हीं महामाया या अंबिका देवी के नाम पर जिला मुख्यालय का नामकरण अंबिकापुर हुआ। मान्यता के अनुसार अंबिकापुर स्थित महामाया मंदिर में महामाया देवी का शरीर स्थित है। इनका शीश बिलासपुर के रतनपुर के महामाया मंदिर में है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा रघुनाथ शरण सिंह देव ने कराया था। चैत्र और शारदीय नवरात्र में विशेष रूप अनगिनत भक्त इस मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं।
रतनपुर और अंबिकापुर में मां महामाया के दर्शन बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। बाघक्वांर के महीने की शारदीय नवरात्र में छिन्नमस्तिका महामाया के शीश का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार हर साल करते हैं। सरगुजा राजपरिवार व इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि मां महामाया मंदिर का निर्माण सन् 1910 में कराया था। इससे पहले एक चबूतरे पर मां स्थापित थी और राज परिवार के लोग जब पूजा करने जाते थे, तो वहां बाघ बैठा रहता था। सैनिक जब बाघ को हटाते थे, तब जाकर मां के दर्शन हो पाते थे।
महामाया, समलाया व विंध्यवासिनी की पूजा एक साथ
सिंहदेव परिवार को ही गर्भ गृह में प्रवेश की अनुमति
मां महामाया सरगुजा राजपरिवार की कुलदेवी हैं। मंदिर में टीएस सिंहदेव विशेष पूजा करते हैं और उनके परिवार के लोग ही मां महामाया और समलाया के गर्भ गृह में प्रवेश कर सकते हैं। मान्यता है कि यह मूर्ति बहुत पुरानी है। सरगुजा राजपरिवार के जानकारों के अनुसार रियासत काल से राजा इन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते आ रहे हैं।
26 सौ तेल व 2 हजार घी के कलश स्थापित: महामाया मंदिर में इस साल 26 सौ तेल के मनोकामना कलश व 2 हजार घी के कलश स्थापित किए गए गए हैं। नवरात्र के पहले दिन सुबह 5.30 बजे आरती और इसके बाद पूरे दिन पूजा-पाठ होगी। वहीं शाम 7.30 बजे विशेष आरती होगी। नौ दिनों तक विविध धार्मिक कार्यक्रम होंगे।
रतनपुर की महामाया भी इसी मूर्ति का अंश
इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि दोनों ही मंदिरों में देवी को जोड़े में रखना था, इसलिए सरगुजा के तत्कालीन महाराज रामानुज शरण सिंह देव की मां और महाराजा रघुनाथ शरण सिंह देव की पत्नी भगवती देवी ने अपने मायके मिर्जापुर से उनकी कुलदेवी विंध्यवासिनी की मूर्ति की स्थापना इन दोनों मंदिरों में कराईं।
Source :- “दैनिक भास्कर”