• April 27, 2024 12:49 am

पराली जलाने से फैले प्रदूषण में क्या और बढ़ेगा कोरोना का खतरा?

ByPrompt Times

Oct 10, 2020
पराली जलाने से फैले प्रदूषण में क्या और बढ़ेगा कोरोना का खतरा?

पर्यावरण पर निगरानी रखने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के वायु गुणवत्ता सूचकांक के आंकड़ों के सहारे इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने पाया कि अक्टूबर के पहले सप्ताह के अंत तक दिल्ली में हवा की गुणवत्ता मध्यम से खराब स्तर की हो सकती है।

लॉकडाउन के दौरान उद्योगों के बंद होने और सार्वजनिक आवाजाही पर रोक लगने की वजह से राजधानी दिल्ली में प्रदूषण काफी कम हो गया था. लेकिन अब एक तरफ लॉकडाउन धीरे-धीरे हटाया जा रहा है, दूसरी तरफ पंजाब से खेतों में पराली जलाने की खबरें आ रही हैं। दिल्ली वालों को अब इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि स्वच्छ हवा ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है।

पर्यावरण पर निगरानी रखने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के वायु गुणवत्ता सूचकांक के आंकड़ों के सहारे इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने पाया कि अक्टूबर के पहले सप्ताह के अंत तक दिल्ली में हवा की गुणवत्ता मध्यम से खराब स्तर की हो सकती है।

वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index – AQI) हवा की गुणवत्ता मापने का पैमाना है. अगर एक्यूआई 0-50 तक है तो इसका अर्थ है कि हवा की गुणवत्ता ‘अच्छी’ है। इसी तरह AQI 51-100 है तो इसका मतलब ‘संतोषजनक’, 101-200 का मतलब ‘मध्यम’, 201-400 का मतलब ‘खराब’, और 400 से अधिक का मतलब है हवा की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ है। बहुत खराब श्रेणी की हवा इंसान के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकती है और सांस लेने में समस्या पैदा कर सकती है।

देशव्यापी लॉकडाउन 1 जून को खत्म हो गया था, लेकिन इसके बाद कई चरणों में अनलॉकिंग की गई। कई उद्योग फिर से खुल गए हैं और सड़कों पर सामान्य आवाजाही बहाल कर दी गई है। बुधवार, 30 सितंबर को सरकार ने अनलॉक 5.0 की घोषणा की। इसके साथ ही और ज्यादा गतिविधियां शुरू करने के लिए हरी झंडी दे दी गई है।

DIU ने 2016 से लेकर 2019 तक, सितंबर और अक्टूबर महीने का औसत AQI निकाला। हमने पाया कि यह साल ​पिछले सालों से अलग नहीं होने वाला है।

इस साल सितंबर के पहले हफ्ते में औसत AQI 79 रही जो कि एयर क्वालिटी की ‘संतोषजनक’ श्रेणी है। ये पिछले चार वर्षों से बेहतर है जब AQI औसतन 115 (मध्यम) रहा था। हालांकि, यह अच्छी खबर थोड़े वक्त के लिए ही थी।

जैसे ही पंजाब में किसानों ने पराली जलाने की शुरुआत की, सितंबर के अंत तक राजधानी में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया। दिल्ली सितंबर के आखिरी सात दिनों का औसत एक्यूआई 145 था, जो कि पिछले चार वर्षों की तुलना में 7.4 फीसदी ज्यादा है।

पिछले चार साल के आंकड़ों से पता चलता है कि असली परेशानी अक्टूबर का पहला हफ्ता खत्म होने के साथ शुरू होती है। पिछले वर्षों के ट्रेंड से पता चलता है कि 8 अक्टूबर के बाद दिल्ली में औसत एक्यूआई 200 (खराब) से ज्यादा दर्ज होना शुरू होता है और फिर इससे ऊपर ही बना रहता है।

ट्रेंड ये भी है कि अक्टूबर के अंत तक दिल्ली में हवा की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ के स्तर तक पहुंच जाती है जहां एक्यूआई 400 से ज्यादा होता है। इस क्वालिटी की हवा में सांस लेना एक दिन में लगभग 20 सिगरेट पीने के बराबर है।

पराली जलाने का मौसम

किसान इस मौसम में प्राय: धान की पराली जलाते हैं। द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) में सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के वरिष्ठ निदेशक डॉ आलोक आधोलिया का कहना है कि “किसानों के लिए प्रभावी और स्वीकार्य समाधान पेश नहीं किए जाते हैं।” डॉ आधोलिया ने कहा, “जब तक किसानों को धान की पराली का मूल्य नहीं मिलता, वे इसे जलाते रहेंगे। इसमें किसी भी हस्तक्षेप से उन्हें पैसा खर्च करना पड़ेगा और वे इसके लिए तैयार नहीं हैं। धान की पराली के लिए मूल्य मिले, इसके लिए एक मिशनरी कार्यक्रम की जरूरत है। हम एक रिसर्च पर काम कर रहे हैं जिससे धान की पराली का विभिन्न उद्योगों में प्रयोग किया जा सकेगा। एक बार मांग पैदा हो गई तो धान की​कटाई के बाद किसान खुद ही पराली को इंडस्ट्री में बेचेगा।”

इस समस्या के समाधान के रूप में ‘पूसा डीकम्पोजर’ नाम का एक कैप्सूल सामने आया है। ये कैप्सूल फसलों के अवशेष को खाद में तब्दील कर देता है। इस कैप्सूल का तरल फॉम्यूलेशन बनाकर खेतों में फसल के अवशेष पर छिड़कने से वे तेजी से सड़कर खाद में बदल जाते हैं।

कोरोना काल में प्रदूषण बढ़ाएगा खतरा

दिल्ली भारत में कोरोना वायरस से सबसे बुरी तरह प्रभावित शहरों में से एक है। कोरोना संक्रमण के लक्षणों के बारे में सबको पता है कि इसमें फेफड़ों को बड़े पैमाने पर नुकसान होता है, जिससे सांस की गंभीर समस्या होती है। कई लोग ऐसी आशंका जता रहे हैं कि प्रदूषण और स्मॉग सांस संबंधी परेशानियों को बढ़ाएगा। इससे कोरोना संक्रमण और बढ़ सकता है।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में द सेंटर फार कंट्रोल ऑफ़ क्रॉनिक कंडीशंस के डायरेक्टर और वाइस प्रेसीडेंट डॉ प्रभाकरन दोराईराज ने कहा कि कोराना महामारी के दौरान अगर किसी को हाई ब्लड प्रेशर, शुगर और हृदय संबंधी बीमारी है तो इससे संक्रमण के गंभीर होने या मौत होने का खतरा बढ़ जाता है।

ऐसे हालात में कोरोना की जटिलता या मौत का खतरा दो से तीन गुना बढ़ जाता है। डॉ दोराईराज का मानना है कि वायु प्रदूषण से हालात और बदतर हो सकते हैं क्योंकि इसके चलते पहले से ही फेफड़े या दिल की बीमारी हो सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *