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हरियाणा में राशन डिपो अलाटमेंट में महिलाओं को मिलेगा 33% आरक्षण

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Mar 10, 2021
हरियाणा में राशन डिपो अलाटमेंट में महिलाओं को मिलेगा 33% आरक्षण

चंडीगढ़। Haryana Budget Session: हरियाणा सरकार ने महिलाओं के लिए रोजगार के साधन मुहैया कराने की मंशा से महिला दिवस पर विधानसभा में उन्हें तोहफा दिया है। प्रदेश सरकार ने घोषणा की है कि राज्य में जितने भी राशन डिपो अलाट होंगे, उनमें 33 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाएंगे। इससे महिलाएं स्वावलंबी बन सकेंगी और अपने लिए आय का बड़ा साधन तैयार कर पाएंगी।

खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री के नाते हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने विधानसभा में यह घोषणा तब की, जब कांग्रेस विधायक जगबीर मलिक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बहस कर रहे थे। डिप्टी सीएम ने सदन में बताया कि हरियाणा देश का पहला राज्य है, जहां राशनकार्ड धारकों को मोबाइल डिपो के माध्यम से उनके घर द्वार पर राशन उपलब्ध करवाया जाएगा। फरीदाबाद में यह प्रक्रिया प्रयोग के तौर पर शुरू की गई है। उन्होंने राशन डिपो के माध्यम से राशन वितरण में पारदर्शिता बरते जाने का दावा किया।

डिप्टी सीएम ने जानकारी दी कि सात जिलों में राशन तोलने के लिए राशन डिपो में ई वेइंग मशीन लगा दी गई हैं। इसके फरीदाबाद व गुरुग्राम जिला में भी लगाने की प्रक्रिया जारी है। चौटाला ने बताया कि केंद्र सरकार की ‘वन नेशन, वन राशन’ स्कीम का जो अभियान चलाया गया है उसके तहत प्रदेश में राशन लेने वाले एक करोड़ 22 लाख लाभार्थियों को आधार नंबर से ङ्क्षलक कर दिया गया है। अगर कोई व्यक्ति राशन डिपो पर राशन लेने जाता है तो मशीन पर पहले आधार नंबर डाला जाएगा। उसके बाद संबंधित व्यक्ति का राशन स्क्रीन पर डिस्पले हो जाएगा। बायोमीट्रिक से प्रमाणिकता जांच कर उसको राशन दिया जाएगा।

वहीं, सदन में महिलाओं का आत्मसम्मान बढ़ाने वाली एक नई इबारत लिखी गई। प्रश्नकाल के बाद महिला विधायकों ने कार्यवाही का संचालन किया। हरियाणा विधानसभा में पीठासीन अधिकारी का दायित्व कांग्रेस की विधायक किरण चौधरी निभा रही हैं। भाजपा विधायक सीमा त्रिखा राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा शुरू करवाई। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा को जजपा विधायक नैना चौटाला आगे बढ़़ा रही हैं।

हु़ड्डा ट्रैक्टर में पहुंचे
इससे पूर्व सत्र में भागीदारी करने के लिए नेता प्रतिपक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस के कुछ अन्य विधायकों के साथ ट्रैक्टर पर सवार होकर पहुंचे। पेट्रोल व डीजल के बढ़ते दामों से खफा कांग्रेसियों ने ट्रैक्टर नहीं चलाया, बल्कि उसे रस्से में बांधकर खींचा है। इस ट्रैक्टर पर हुड्डा और कुछ विधायक बैठे थे. जबकि कुछ विधायक और पार्टी के प्रमुख नेता इस ट्रैक्टर को रस्से से खींच रहे थे।

अभय यादव और वरुण चौधरी सर्वश्रेष्ठ विधायक
नांगल चौधरी से भाजपा विधायक डाक्टर अभय सिंह यादव और मुलाना से कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी को सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया है। विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने बजट सत्र के दूसरे दिन सदन में इसकी जानकारी देते हुए बताया कि लोकसभा की तर्ज पर हरियाणा विधानसभा में भी प्रतिवर्ष सर्वश्रेष्ठ विधायक चुनने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है। इस कमेटी ने पहले वर्ष के लिए डाक्टर यादव और वरुण चौधरी को सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना है।

डाक्टर अभय सिंह यादव 2001 बैच के आइएएस अधिकारी रहे और सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर फरवरी 2014 में राजनीति में आए। पहली बार में ही भाजपा के टिकट पर अभय यादव चुनाव जीते। 2019 में यादव दूसरी बार विधायक चुने गए। विधानसभा में डाक्टर यादव भाजपा की तरफ से प्रत्येक गंभीर चर्चा में पक्ष रखते हैं। इसके अलावा डाक्टर यादव सदन की गरिमा बनाए रखने में भी मिसाल पेश करते हैं। 23 मार्च 1980 को अंबाला में जन्मे युवा विधायक वरुण चौधरी पहली बार विधायक बने हैं। वरुण को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता फूलचंद मुलाना चार बार विधायक और राज्य में मंत्री भी रह चुके हैं। इसके अलावा फूलचंद मुलाना प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

हरियाणा में महिला नेताओं का लंबा इतिहास
प्रदेश में बहुत ही ऐसी महिला राजनेता हैं, जिन्होंने देश और दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ी। अंबाला जिले से ताल्लुक रखने वालीं सुचेता कृपलानी और सुषमा स्वराज दो ऐसी नेता हैं, जो उत्तर प्रदेश व दिल्ली राज्यों की मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचीं। सोमवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। आजकल हरियाणा विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। इस लिहाज से सदन की कमान महिला विधायकों के हाथों में होने का पूरे देश में अलग संदेश जाएगा।
2014 के विधानसभा चुनाव में 13 महिला विधायक चुनकर आई थी। 90 सदस्यीय विधानसभा में 2019 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा घटकर नौ रह गया। 1967 से लेकर 2019 के बीच हुए 13 विधानसभा चुनावों में केवल 87 महिलाएं ही विधानसभा तक पहुंचने में कामयाब हो पाई हैं। विधानसभा में यह औसत प्रति चुनाव सिर्फ छह से सात महिला विधायकों का बनता है, जो राजनीति में 33 फीसद आरक्षण की मांग से बेहद कम है।

हरियाणा सरकार महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने के लिए पंचायत चुनाव में उनके लिए 50 फीसद आरक्षण का फैसला पहले ही ले चुकी है। अब शहरी निकायों में यह आरक्षण देने की कवायद चल रही है। राजनीतिक दल जिस दिन चाह लेंगे, उस दिन उनकी पार्टियों में महिलाओं के लिए कम से कम 33 फीसद आरक्षण की व्यवस्था संभव है। हरियाणा के सदन से सोमवार को महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने का संदेश निकलने वाला है। इसकी धमक पूरे देश में सुनाई देगी तो राजनीति में महिलाओं का आगे आना तय है।

इन महिलाओं ने बढ़ाया हरियाणा का मान
कन्या भ्रूण हत्या, आनर किलिंग और घूंघट के लिए हरियाणा अकसर बदनाम रहा है, लेकिन अब जागरूकता लगातार बढ़ रही है। हरियाणा की महिला राजनेताओं ने देश-प्रदेश की राजनीति को हमेशा नए आयाम दिए हैं। देश की पहली मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी हरियाणा के अंबाला शहर की रहने वाली थी, जो सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की पहली मुख्यमंत्री बनीं। केंद्रीय मंत्री रह चुकी सुषमा स्वराज भी अंबाला छावनी की रहने वाली थीं, जो दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं।

कुमारी सैलजा ऐसा बड़ा नाम हैं, जो केंद्रीय राजनीति में मजबूती के साथ सक्रिय हैं। उन्हें सोनिया गांधी का नजदीकी माना जाता है। पुडुचेरी की उप राज्यपाल के पद तक पहुंचीं चंद्रावती और भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में छाई डा. सुधा यादव ऐसे नाम हैं. जिन्होंने हरियाणा को अलग पहचान दिलाई। पूर्व सीएम बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी, पौत्री श्रुति चौधरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र ङ्क्षसह की पत्नी स्नेहलता, पूर्व सीएम भजनलाल की पत्नी जसमा देवी, पुत्रवधु रेणुका बिश्नोई और डिप्टी स्पीकर रहीं संतोष यादव ने भी हरियाणा की राजनीति में मजबूत जगह बनाई है।

शकुंतला भगवाडिय़ा चार बार और प्रसन्नी देवी पांच बार पहुंचीं विधानसभा
पहली बार 1968 में बावल हलके से शकुंतला भगवाडिय़ा विधायक बनीं। 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव जीतीं। इसके बाद 1982, 1991 में बावल से जीतीं। वहीं, कांग्रेस की प्रसन्नी देवी ने करनाल के इंद्री विधानसभा क्षेत्र से 1967, 1968, 1972 में चुनाव जीता। 1982 और 2005 में वह पानीपत के नौल्था विधानसभा सीट जीतीं। इस तरह वह पांच बार विधायक बनीं।

पंचायत चुनाव में 42 फीसद महिलाओं ने जीती जंग
ग्राम पंचायत चुनाव में हरियाणा के लोगों ने महिलाओं को निर्धारित कोटे 33 फीसद से कहीं अधिक संख्या में चुनाव जिताया। पिछले यानी 2015 के पंचायत चुनाव में प्रदेश में पहली बार लोगों ने पंचायतों में 42 फीसद सीटों पर महिलाओं की ताजपोशी की। इससे सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढृने की उम्मीद जगी है। मौजूदा समय में प्रदेश में 83 लाख से अधिक महिला मतदाता हैं। इस बार 2020 में होने वाले चुनाव में महिलाओं को पंचायत चुनाव में 50 फीसद आरक्षण की व्यवस्था है।

अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाईं सुषमा स्वराज, किरण ने गाड़े झंडे
हरियाणा की सरजमीं से राष्ट्रीय फलक तक पहुंचीं सुषमा स्वराज ने राष्ट्रीय राजनीति में लंबा सफर तय किया है। हरियाणा की बेटी और भाजपा की कद्दावर नेता रहीं स्व. सुषमा स्वराज वर्ष 1977 में जनता पार्टी और वर्ष 1987 में भाजपा के टिकट पर अंबाला कैंट से चुनाव जीती थीं। वे 25 साल की उम्र में जनता पार्टी की हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनी थीं। बाद में वे दिल्ली की राजनीति में सक्रिय रहीं। मोदी सरकार में विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने दुनिया भर में अलग छाप छोड़ी। वह लोकसभा में विपक्ष की नेता भी रहीं।

छह बार सांसद और तीन बार विधायक चुनी गईं सुषमा वर्ष 1998 में दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं और उनका कार्यकाल मात्र दो महीने का रहा। वह वाजपेयी सरकार में मजबूत मंत्री थीं। पेशे से वकील रहीं सुषमा ने वर्ष 1977 में हरियाणा से करियर की शुरुआत की थी। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी दिल्ली विधानसभा की उपाध्यक्ष रहीं तथा हरियाणा में कांग्रेस विधायक दल की नेता रह चुकी हैं। उनकी बेटी श्रुति चौधरी सांसद रह चुकी हैं।

उत्तर प्रदेश की सीएम रहीं सुचेता कृपलानी ने दान कर दी थी संपत्ति
वर्ष 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। सुचेता स्वतंत्रता सेनानी के साथ संविधान सभा के लिए चुनी जाने वाली कुछ महिलाओं में शामिल थीं। इसके अलावा वह कई उप समितियों में भी शामिल रहीं. जिन्होंने स्वतंत्र भारत का संविधान तैयार किया। मूल रूप से अंबाला शहर की रहने वाली 1962 में सुचेता कृपलानी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा। वे कानपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गईं और उन्हें श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया।

1963 में उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। 1967 तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 1967 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़कर जीत हासिल की। 1971 में उन्होने राजनीति से संन्यास ले लिया। नि:संतान होने के कारण उन्होंने अपना सारा धन और संसाधन लोक कल्याण समिति को दान कर दिया।

हरियाणा की पहली महिला सांसद चंद्रावती ने बंसीलाल को हराया
पेशे से वकील चंद्रावती अपने इलाके में कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला थीं। वे प्रदेश की महिला सांसद भी बनीं। 1950 के दशक में संयुक्त पंजाब-हरियाणा की विधानसभा में पहुंचने वाली चंद्रावती ने जनता दल की टिकट पर वर्ष 1977 के चुनाव में तब कद्दावर कांग्रेस नेता बंसीलाल को एक लाख वोटों से हराया था।

हरियाणा गठन के बाद 10 फीसद सीटों ही चौधर
वर्ष 1967 में हरियाणा गठन के बाद से अब तक 13 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। तीन चुनावों को छोड़ दें तो बाकी किसी में 10 फीसद सीटें भी महिलाओं के खाते में नहीं गईं। वर्ष 2005 के चुनाव से विधानसभा में महिलाओं की संख्या बढऩी शुरू हुई है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के नारे के फलीभूत होने के बाद अब हरियाणा में जरूरत राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की है।

केवल 1999 में ही दो महिलाएं लोकसभा पहुंचीं
मई में हुए 17वीं लोकसभा के चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विजयी हुए। सिरसा लोकसभा सीट से एक मात्र महिला सुनीता दुग्गल संसद पहुंचीं। 2014 के 16वें लोकसभा चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं जीती थी। सन 1999 में दो महिलाएं लोकसभा में पहुंची। कुरुक्षेत्र से कैलाशी सैनी इनेलो के टिकट पर और गुरुग्राम से सुधा यादव भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतीं।

  • हरियाणा में महिलाओं की स्थिति

महिला कामगार 17.79 फीसद
महिला किसान 32.78 फीसद
महिला कृषि मजदूर 23.08 फीसद
अन्य महिला कामगार 40.55 फीसद
नोट :- सभी आंकड़े वर्ष 2011 के केंद्र सरकार के सर्वे के अनुसार।

चुनावी वर्ष महिला विधायकों की संख्या

1967 – 4
1968 – 7
1972 – 4
1977 – 4
1982 – 7
1987 – 5
1991 – 6
1996 – 4
2000 – 4
2005 – 11
2009 – 9
2014 – 13
2019 – 9

इसलिए महिलाओं पर दांव नहीं खेलते सियासी दल
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. रमेश मदान के अनुसार महिलाओं के जीतने की संभावना काफी कम होती है, इसलिए राजनीतिक दल उन पर दांव खेलने से परहेज करते हैं। हालांकि यह उनकी अपनी सोच है। यदि महिलाओं को मौका मिले तो वह चुनाव जीत सकती हैं। यही वजह है कि सियासी गलियारों में महिला सशक्तीकरण एक दूर का सपना है।

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