• April 27, 2024 8:13 pm

ज़रूरी नहीं कि सूरज जैसे हर प्रयास में तुंरत सफलता मिले, लेकिन यह भी सच है कि सफलता बिना प्रयास के नहीं मिलती

16 अप्रैल2022 | इस शुक्रवार मेरे गैराज में रिनोवेशन के काम से निकला सीमेंट का मलबा पड़ा था। मैंने आपत्ति जताई तो वहां मलबा जमा कर रहे कामगार ने चुपचाप गमछे से हाथ पोंछे और कुर्ते की अंदरूनी जेब से मोबाइल निकालकर किसी से विशुद्ध राजस्थानी में बात करने लगा। मुझे एक भी शब्द समझ नहीं आया। उसके होठों के हिलने से समझ आ रहा था कि वह गुस्से में है।

मैंने चौकीदार से कहा कि वह मेरे वॉक से लौटने से पहले यह जगह साफ कर दे। शाम को पार्क में वॉक के दौरान मुझे एक कॉल आया। वॉक करते हुए मैं मोबाइल स्पीकर पर बात करता हूं। इसके दो कारण हैं, 1. हेडफोन लगाए मुंबई के लोगों को दूसरों की परवाह नहीं है। 2. इससे मेरा पसीना फोन में नहीं जाता।

जब मैं चलते हुए बात कर रहा था तो मुझसे 6 इंच की दूरी पर एक लड़का साथ चलते हुए बातें सुन रहा था। वह 25 मिनट के कॉल के दौरान ऐसा ही करता रहा। मेरी बात खत्म हुई तो वह किसी और को ढूंढने लगा, जो चलते हुए बात कर रहा हो। चूंकि उसकी यह हरकत अजीब थी, इसलिए मैंने उसे बुलाकर पूछा कि वह क्या कर रहा है? जवाब चौंकाने वाला था।

उसने अपना नाम सूरज दुबे बताते हुए कहा, ‘मैं आपको अंग्रेजी बोलते हुए सुन रहा था।’ जब मैंने कारण पूछा तो उसने कहा, ‘मैं अंग्रेजी बोलना चाहता हूं, पर हमारे गांव में कोई अंग्रेजी नहीं बोलता।’ उसने बताया कि वह उत्तर प्रदेश के सराय बीका जौनपुर में लॉर्ड बुद्धा नेशनल पब्लिक स्कूल में पढ़ता है और छुट्टियों में मौसी के घर, मुंबई आया है।

वह बोला, ‘पिछले पांच दिनों से मैं पार्क में आकर अंग्रेजी बोलने वालों को सुन रहा हूं।’ मैंने पूछा कि उसने वॉक के दौरान मुझसे कौन-से अंग्रेजी शब्द सुने तो वह बोला, ‘एक भी नहीं, आप बहुत तेज़ बोलते हैं। लेकिन आपकी स्टाइल मुझे पसंद आई और आपको सुनना अच्छा लगा। आप जिस लड़की से बात कर रहे थे, वो आपसे ज्यादा अच्छा बोल रही थी।’

मुझे उसकी निष्पक्ष राय पसंद आई क्योंकि कॉलर न्यूयॉर्क से थी। फिर मैंने उसे सिखाया कि ‘मैं छुट्टियों में मौसी के घर आया हूं’ को अंग्रेजी में कैसे कहते हैं। मेरी छोटे शहर से आए महत्वाकांक्षी बच्चे के साथ सेल्फी लेने की इच्छा हुई, जिसने अपना पूरा ध्यान एक नई भाषा सीखने पर लगाया है। मैंने सूरज से फिर मिलने का वादा किया।

इससे मुझे उस राजस्थानी कामगार के होठों का हिलना याद आया और मेरी इच्छा हुई कि काश मुझमें भी सूरज जैसी जिज्ञासा होती या मेरा दिमाग गूगल के स्मार्ट ग्लास (चश्मा) जैसा होता, जो किसी के बोलने का तुरंत अनुवाद करता जाता है। इस स्मार्ट ग्लास को पहनने वाले, विदेशी भाषा बोल रहे व्यक्ति की बात समझ सकते हैं।

ग्लास से बोलने वाले के चेहरे के बगल में एक टेक्स्ट बबल दिखता है, जिसमें यह लिखा होता है कि वह व्यक्ति क्या बोल रहा है। यह टीवी पर चलने वाले सब्टाइटल की तरह है। ये ग्लास अभी प्रोटोटाइप चरण में हैं। इनमें एक छोटा कैमरा, माइक्रोफोन और बहुत छोटा कम्प्यूटर है। इनके साथ एक बेहद छोटा प्रोजेक्टर है, जो ग्लास के लेंस को स्क्रीन की तरह इस्तेमाल करता है।

यह गैजेट सुनकर, अनुवाद को इसी स्क्रीन पर दिखाएगा। इस नई खोज को पेश करते हुई गूगल के चीफ़ एग्जीक्यूटिव सुंदर पिचाई ने बुधवार को कहा, ‘ज्ञान और कम्प्यूटिंग में हमारा ध्यान इसपर है कि लोग एक-दूसरे की बात समझें और समझा पाएं।’

फंडा यह है कि ज़रूरी नहीं कि सूरज जैसे हर प्रयास में तुंरत सफलता मिले, लेकिन यह भी सच है कि सफलता बिना प्रयास के नहीं मिलती। जैसे सुंदर पिचाई के लोगों ने प्रयास किए। ‘सूरज’ जब कोई सपना देखेगा, तभी जीवन ‘सुंदर’ बनेगा।

Source;- ‘’दैनिकभास्कर’’

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