अफगानिस्तान में हुकूमत पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत को भी तालिबान की अंतरिम सरकार से बात करने के लिए कदम बढ़ाना ही पड़ा. क्योंकि वहां फंसे भारतीय लोगों की सुरक्षा के लिए यह करना जरुरी था. इसे यूँ भी समझाजा सकता है कि तालिबान को लेकर अब भारत का रुख़ बदलता दिख रहा है. पिछले दिनों भारत के विदेश मंत्रालय ने बताया कि क़तर की राजधानी दोहा में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख, शेर मोहम्मद अब्बास स्तानेकज़ई से संक्षिप्त मुलाक़ात की है.
इस बीच तालिबान की अफगानिस्तान में बढती हैसियत के संकेत कुछ महीने पहले से मिलने लगे थे. बहुत से राजनीतिक विश्लेषक ऐसा भी मानते हैं कि भारत और तालिबान के बीच संपर्क पिछले कई महीनों से है. भले ही अभी पहली बार भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से क़ुबूल किया है कि तालिबान से उसकी बात हुई है. भारत ने कहा है कि ऐसा तालिबान के अनुरोध पर हुआ है. यानी तालिबान भी भारत की उपेक्षा करने की स्थिति में नहीं है.
राजनीतिक प्रेक्षक इसे यूँ भी देखते हैं कि तालिबान से अनुरोध आना और भारत का इसे कुबूउल करना राजनीति की बदली हुई तस्वीर का नतीजा है. दूसरी तारफ यह भी कहा जा रहा है कि भारत फिलहाल तालिबान की स्थिति को लेकर बेहद सावधान और रक्षात्मक है.
भारत के विदेश मंत्रालय ने यह भी साफ़ किया है कि अभी की बातचीत का मुख्य उद्देश्य भारतीयों की अफगानिस्तान सुरक्षित वापसी को लेकर हुई है. दीपक मित्तल ने तालिबान के प्रतिनिधि से यह सुनिश्चित करने को कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन भारत विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. अब यह देखना होगा कि तालिबान द्वारा भारत के अनुरोध को किस तरह से स्वीकार किया जाता है और इस पर किस तरह से अमल किया जाता है.
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