• April 28, 2024 7:36 pm

विधायक भी कलाकारों के साथ नाचे, बच्चे और महिलाओं में दिखा जोश

12 सितंबर 2022 | राजस्थान में पहली बार गवरी महाकुंभ का आयोजन हुआ। उदयपुर में आयोजित इस लोक नृत्य में 14 गवरी टीमों के कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। 1800 से ज्यादा कलाकारों ने सुबह से शाम तक दर्जन भर नाट‌‌क मंचन करते हुए मनोरंजन किया। इस गवरी को देखने के लिए हजारों लोग गोर्वधनविलास पहुंचे। उदयपुर जिले का करीब 55 फीसदी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र (टीएसपी एरिया) माना जाता है।

उदयपुर के ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा ने इसका आयोजन करवाया। इससे पहले भी मीणा 11 गवरी टीमों के कलाकारों का एक साथ गवरी का आयोजन करवा चुके हैं। विश्व में एक मात्र मेवाड़ है, जहां ये लोक परंपरा है।

विधायक फूलसिंह मीणा ने इस बार 21 गांवो की गवरी को आमंत्रित किया था। हालांकि 7 गांवों की गवरी के कलाकार किन्हीं कारणों से नहीं आ सके। उदयपुर-बलीचा मार्ग पर होटल हर्ष पैलेस के बाद चौक में गवरी का आयोजन हुआ। इस गवरी महाकुंभ में डोडावली, पछार, अलसीगढ़, पाई, चनावदा, रवा, अमरपुरा बारांपाल, लेई रकमपुरा ढ़ीकली, डाकनकोटडा, करनाली और काया गांव के कलाकार शामिल हुए।

यह सभी गांव उदयपुर शहर से सटे अलग-अलग आदिवासी अंचल के गांव के रहने वाले 1800 भील जाति के युवा थे। इन गवरी कलाकारों में ज्यादात्तर प्रवासी थे, जो दिल्ली, मुंबई और गुजरात समेत कई अलग-अलग इलाकों में रहकर नौकरी करते हैं। ये सभी रक्षाबंधन के 1 दिन बाद से अपने गांव की टीम में शामिल होकर गवरी खेल रहे हैं।

विधायक मीणा बताते हैं कि पिछले 20 सालों से हर साल गवरी का आयोजन करवा रहे हैं। पिछले 2 सालों में कोरोना के चलते गवरी का आयोजन नहीं करवा पाए तो इस बार उन्होंने कुछ बड़ा करने का सोचा था। ऐसे में उन्होंने 21 गांवो की गवरी टीमों से बात कर आमंत्रित किया। 3 साल पहले वे 11 टीमों का एक साथ आयोजन करवा चुके हैं।

सुबह 11 बजे से शुरू हुई इस महागवरी में अलग-अलग नाटक के मंचन ने सभी का मनोरंजन किया। लोग अपने बच्चों के साथ आए और उन्हें इस लोक नृत्य के बारे में बताया। बुजुगों के साथ ही महिलाएं भी गवरी देखने आई। भील समाज के युवाओं व बुजुर्गों ने गवरी नृत्य में अपनी पारंपरिक कला का बखूबी प्रदर्शन किया।

कलाकारों द्वारा हिंदी, अंग्रेजी, मारवाड़ी व मेवाड़ी भाषा को कुछ इस अंदाज से बयां किया की सभी का मन मोह लिया। गवरी में कलाकारों द्वारा देवी अंबा, हटिया दाणा, चोर- सिपाही और काना-गुर्जरी समेत एक दर्जन प्रसंगों पर कलाकारों द्वारा प्रस्तुति दी गई।

दरअसल मेवाड़ में रक्षाबंधन के एक दिन बाद से गवरी के आयोजन हो रहे है। यह प्रसिद्व लोक नाट्य और नृत्य है, जो भील जाति द्वारा 40 दिनों तक किया जाता हैं। माता गोरज्या और शिव की अराधना के रूप में इसका आयोजन किया जाता है। गवरी में सभी 150 कलाकार पुरुष होते हैं, जिनमें कई महिलाओं का किरदार निभाते हैं।

अमरपुरा से आए लक्ष्मण महाराज ने बताया कि गवरी में हिस्सा लेने वाले कलाकारों के लिए बहुत कड़े नियम होते हैं। जो गवरी करते हैं, वे 40 दिन तक नहीं नहाते हैं। हरी सब्जियां और मांस-मदिरा का त्याग कर दिन में सिर्फ एक बार ही खाना खाते हैं। नंगे पांव रहने के साथ ही सवा महीने तक अपने घर ना जाकर मंदिर में रहते हैं। जमीन पर सोते हैं। इसमें दो दर्जन से ज्यादा बाल कलाकार भी होते हैं।

डोडावली गांव से आए कलाकार गोपीलाल ने बताया कि मानव जाति में भील सबसे पुरानी जाति है। गवरी आदिकाल से चली आ रही लोक परंपरा है। यह नृत्य शिव-पार्वती को केन्द्र में रखकर किया जाता है। जिस गांव में यह व्रत लिया जाता है, उस गांव के हर आदिवासी घर से एक व्यक्ति यह व्रत करता है। इससे पूरा गांव इससे जुड़ जाता है।

Source:-“दैनिक भास्कर”

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