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अब पेड़ों पर भी दिखेगी छत्तीसगढ़ियां परंपरा और संस्कृति, नगर पालिका ने की अनूठी पहल

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Jan 15, 2021
अब पेड़ों पर भी दिखेगी छत्तीसगढ़ियां परंपरा और संस्कृति, नगर पालिका ने की अनूठी पहल

दुर्गःछत्तीसगढ़ की परंपराएं और संस्कृति पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखती है. जल-जंगल और प्रकृति से भरपूर यह राज्य अपने अनोखे तीज त्योहारों के लिए भी देशभर में मशहूर है. जंगल से घिरे सरगुजा से लेकर बस्तर तक छत्तीसगढ़ में विभिन्न रीति रिवाजों के साथ सभी तीज त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं. खास बात यह है कि अब इन त्योहारों की झलक आपको छत्तीसगढ़ के पेड़ों पर भी दिखाई देगी. जिसकी शुरूआत दुर्ग जिले में आने वाली कुम्हारी नगर पालिका से की गई हैं.

पेड़ों पर उकेरी जाएगी कलाकृतियां
दुर्ग जिले की कुम्हारी नगर पालिका ने प्रमुख त्योहारों को सांकेतिक रूप से दिखाने के लिए पेड़ों पर कलाकृतियां उकेरने की शुरूआत की है. यह कलाकृतियां यहां से आने जाने वाले राहगीरों को छत्तीसगढ़ियां संस्कृति से रूबरू कराएगी, इसके लिए बाकायदा रायपुर से कलाकार बुलाए गए हैं, जो पेड़ों पर पेंटिंग कर छत्तीसगढ़ी संस्कृति और सभ्यता को दर्शा रहे हैं.

300 पेड़ों पर बनाई जा रही कलाकृतियां
कुम्हारी से जंजगिरी तक करीब 300 पेड़ों पर कलाकृतियां उकेरे जाने का यह काम शुरू हो गया है. सभी पेड़ों पर 3 से 4 फीट की ऊंचाई तक रंग रोगन किया जाना शुरू हो गया है. खास बात यह है कि इन कलाकृतियों को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए अलग-अलग रंगों का चयन भी किया गया है, जिसमें हर एक पेड़ पर अलग-अलग कलाकृतियों के आधार पर रंगों का उपयोग किया जा रहा है, ताकि आगे चलकर यह छत्तीसगढ़ संस्कृति और कला की मिसाल बन सके.

आदिवासी संस्कृति की दिखेगी छटा
पेड़ों पर जो कलाकृतियां उकेरी जा रही है, उन पर आदिवासी संस्कृति समेत छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीज त्योहारों की भी छटा दिखाई देगी. इसके अलावा छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य, गौर, शैला, ककसार, सुआ, जवारा, पंडवानी, करमा, राउत और पंथी समेत अनेक नृत्यों की कलाकृतियां भी बनाई जा रही हैं. जो इन दिनों कुम्हारी में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इसके अलावा पेड़ों पर उन वाद्य यंत्रों की कलाकृति भी बनाई जा रही हैं, जो धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर है.

इस पहल को लेकर कुम्हारी नगर पालिका के अध्यक्ष राजेश्वर सोनकर ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मार्गदर्शन पर यह काम शुरू किया गया है. सीएम बघेल ने ”गढ़बो नवा छत्तीसगढ़” का स्लोगन दिया है. इसलिए हम सब उसी के तर्ज पर काम करने में जुटे हैं. राजेश्वर सोनकर ने कहा कि इस पहल के जरिए हम अपनी धरोहर और संस्कृति को प्रदर्शित कर रहे हैं. सौंदर्यकरण के इस काम में करीब 38 लाख रुपए का खर्चा आएगा. इसमें करीब 18 लाख की लागत से पेड़ों पर कलाकृतियां बनाई जा रही है.

ZEE

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