23 अगस्त 2022 | इस दुनिया में जिसको-जब अवसर मिलता है, एक-दूसरे को धकेलकर आगे बढ़ जाता है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में समय रहते अपने बच्चों को जीवन जीने का सही ढंग सिखा देना चाहिए। फिर जो कुछ उन्हें सिखाया है, उसके परिणाम पर भी नजर रखें। राम जब वनवास पर जा रहे थे तो लक्ष्मणजी की माता सुमित्रा ने उनको कुछ सीख दी थी और जब लौटकर आए तो उनमें वे ही लक्षण देखे।
यहां तुलसीदासजी लिखते हैं- ‘भेटेउ तनय सुमित्रां राम चरन रति जानि।’ सुमित्राजी पुत्र लक्ष्मण की रामजी के चरणों में प्रीति जानकर उनसे मिलीं। सुमित्राजी ने लक्ष्मण के भीतर यही प्रीति जगाते हुए कहा था सीता तुम्हारी मां हैं, राम पिता हैं। यदि ये दोनों वन में जा रहे हैं तो तुम्हारा यहां अयोध्या में कोई काम नहीं।
राम जन-जन के प्रिय हैं, स्वार्थरहित सखा हैं। एक भाई के रूप में तुम्हारे लिए भी वे अद्भुत हैं, इसलिए उनसे जुड़े रहो। देखिए, यहां एक मां ने अपनी संतान को सिखाया था कि सदैव शुभ के साथ जुड़े रहो। हमें भी अपने बच्चों को यही सिखाना है।
Source:-“दैनिक भास्कर”