• April 20, 2024 5:50 am

अगर आपको लगता है, बच्चे ईश्वर का अवतार हैं तो उन्हें प्रोत्साहित करें

25 अगस्त 2022 | बाइबिल में नोआ की एक कहानी है कि किस तरह प्रभु ने उसे और उसके अनुयायियों को वचन दिया कि फिर कभी भी मानव परिवार को बाढ़ से प्रलय का खतरा नहीं होगा। ऐसा माना जाता है कि प्रभु ने नोआ को आशीर्वाद में जो इशारा किया वो इंद्रधनुष का था। इंद्रधनुष खोजने वाले विभिन्न लोगों के लिए इसके गहरे अर्थ और अलग-अलग महत्व हैं।

जीवन में बड़ी व्यक्तिगत क्षति झेलने वालों के मन में इंद्रधनुष देखते ही गहराई से असर होता है। कुछ लोगों को लगता है कि वे भाग्यशाली है और ईश्वर उन्हें भूला नहीं है। जब भी मैं इंसानों द्वारा पैदा हुई समस्याओं से उपजी बाढ़ (पढ़ें बुराइयां) देखता हूं तो बचपन में सुनी ये लंबी कहानी याद आ जाती है। मैं हाल में देश के कुछ हिस्सों में आई बाढ़ की बात नहीं कर रहा, मैं दरअसल पौधरोपण के नाम पर प्लास्टिक थैलियों को फेंकने की समस्या का जिक्र कर रहा हूं।

बारिश शुरू होते ही पौधरोपण अभियान के लिए प्लास्टिक की काली थैलियों में रखे पौधों को सबने देखा होगा। हर प्लास्टिक थैली 13 से 20 ग्राम की होती है और उनमें अधिकांश कूड़े के ढेर में पहुंचकर धरती पर बोझ बन जाती हैं। पर पौधरोपण करने वालों ने शायद ही इस एक स्रोत से प्लास्टिक की बाढ़ की ओर ध्यान दिया होगा।

मेरे लिए इस समस्या का इंद्रधनुष (पढ़ें समाधान देने का वादा) ए श्रीजा (14) थी जो कि साल 2020 में भागकर अपनी हेडमास्टर अगस्तियेन के पास गई और बोली कि ये बायोडिग्रेडेबल नहीं हैं और पर्यावरण को हानि पहुंचा सकते हैं। ऐसा नहीं करने देना चाहिए। अगस्तियेन ने धैर्य से उसकी पर्यावरणीय चेतना को सुना और तब से वे इसे सुलझाने के लिए टीम बन गए।

आज उनका समाधान उनके निवास-तेलंगाना में जोगुलबा गडवाल जिला (2016 तक महबूबनगर जाना जाता था) तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे देश में जाना जाता है। तब जिला परिषद स्कूल की छात्रा अब 16 साल की हो गई है और श्रीजा ग्रीन गैलेक्सी कंपनी की सीईओ है, यह कंपनी मूंगफली के छिलकों से बायो-पॉट्स बनाती है, ताकि पौधों के लिए प्लास्टिक थैलियों की जरूरत न पड़े।

तेलंगाना सरकार के टी-वर्क्स विभाग को लगा कि श्रीजा के आइडिया में पौधरोपण के तरीके को पूरी तरह से बदलने की क्षमता है। उन्हें पूरा भरोसा था कि इससे यह समुदाय प्लास्टिक से पूरी तरह मुक्त हो सकता है। पूरी टीम ने श्रीजा के साथ मिलकर टी-वर्क्स के ऑफिस में इस पेस्ट को अलग-अलग प्राकृतिक चीजों के साथ मिलाकर मोडिफाई किया ताकि ये बायो-पॉट वाकई काम में आ सकें।

कंपनी ने मशीन बनाने पर काम किया ताकि आइडिया बड़े पैमाने पर लागू हो। उन्होंने मशीन का प्रोटोटाइप बनाया जो कि हर माह 10 हजार पॉट्स बनाती है। इससे जुड़ी इंडस्ट्री में ये खबर जंगल में आग-सी फैल गई और जीई अप्लायंसेज उत्पादन इकाई शुरू करने के लिए जरूरी उपकरण व बायोप्रोसेस के लिए फंड करने हेतु आगे आया।

श्रीजा का परिवार, जिसे शुरू में लग रहा था कि उनकी बच्ची कुछ पॉटरी सीख रही है, अब जो एक आइडिया जिस स्तर पर आगे बढ़ रहा है, उसे देखकर उनका मुंह खुला का खुला रह गया है। आज जब ये धरती ऐसी प्लास्टिक और मानव निर्मित आपदाओं से पटी पड़ी है, ऐसे में श्रीजा का बायो-पॉट यकीनन पौधरोपण के इस बिजनेस में इंद्रधनुष है। उसकी कंपनी ऐसे लोगों के लिए लिक्विड पेस्ट दे भी सकती है, जो खुद पॉट बनाना चाहते हों।

फंडा यह है कि अगर आपको लगता है, बच्चे ईश्वर का अवतार हैं तो उन्हें प्रोत्साहित करें व मदद करें क्योंकि अगली पीढ़ी में वो माद्दा है कि धरती की सारी समस्याओं के वे ‘इंद्रधनुष’ बन सकते हैं।

Source:-“दैनिक भास्कर”

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