राज्य सरकार ने 2005 के बाद नियुक्त हुए सभी शिक्षक, कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना के दायरे में लाने की सिफारिश की है। राज्य सरकार ने इस संदर्भ में केंद्र सरकार को पत्र भेज दिया है। राज्य में एक अक्तूबर 2005 के बाद नियुक्त हुए सभी शिक्षक और कर्मचारी खुद को पुरानी पेंशन योजना के दायरे में लाने की मांग कर रहे हैं। पुरानी पेंशन बहाली के लिए कर्मचारियों द्वारा आंदोलन भी चलाया जा रहा है।
देश के अन्य राज्यों की भांति ही उत्तराखंड में भी यह आंदोलन लगातार तेजी पकड़ रहा है। विधानसभा के पिछले सत्र में कांग्रेस विधायकों ने भी नए कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ देने का मुद्दा उठाया था। हाल में पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन से जुड़े कर्मचारियों नेताओं व अन्य संगठनों ने भी सरकार के सामने यह मुद्दा उठाया था जिसके बाद अब राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर 2005 के बाद नियुक्त हुए कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना के दायरे में लाने की सिफारिश की है। अपर सचिव वित्त अरुणेंद्र चौहान ने इसकी पुष्टि की है।
इसलिए हो रही पुरानी पेंशन बहाली की मांग
पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन के प्रदेश अध्यक्ष जीतमणि पैन्यूली ने बताया कि नई पेंशन योजना के विरोध के तीन प्रमुख कारण है। पहला यह कि इसमें पेंशन की किस्त बाजार की स्थिति पर निर्भर करेगी। दूसरा इसके तहत जीपीएफ निकासी में दिक्कत आती है। तीसरा इसमें पेंशन के लिए अंशदान के रूप में कर्मचारियों के वेतन से पैसा काटा जाता है। कर्मचारियों का यह भी कहना है कि, सेवानिवृत्ति पर कर्मचारियों को अनुदान केवल 60 फीसदी वापस मिलेगा। प्राप्त धनराशि में आयकर भी काटा जाएगा। वेतन आयोगों की संस्तुतियों में वेतन की तरह पेंशन के संशोधन का भी प्राविधान नहीं है। पैन्यूली ने कहा कि, पुरानी पेंशन योजना में ये समस्याएं नहीं हैं। उन्होंने सरकार से मांग की कि इस संदर्भ में केंद्र से सिफारिश करने की बजाए राज्य सरकार पेंशन स्कीम में खुद बदलाव करे।
पुरानी पेंशन बहाली की सिफारिश स्वागत योग्य कदम है। लेकिन सरकार राज्य कर्मचारियों की पेंशन योजना में अपने स्तर पर भी बदलाव कर सकती है। सरकार जल्द से जल्द यह फैसला करे ताकि राज्य के कर्मचारियों का भविष्य सुरक्षित हो।
अरुण पांडे, कार्यकारी महामंत्री, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद