कोरोना वायरस ने दुनिया को हाल ही में फिजिकल डिस्टेंसिंग सिखाई है, वहीं पाकिस्तान की एक रहस्यमयी जनजाति दशकों से ऐसा कर रही है. कलाश नाम का ये समुदाय हिंदू कुश पहाड़ों से घिरा हुआ है और मानता है कि इसी पर्वत श्रृंखला से घिरा होने की वजह से उसकी संस्कृति सुरक्षित है. केवल 4,000 लोगों का ये समूह इन दिनों अपना सबसे बड़ा त्योहार चेमॉस (Chawmos) मना रहा है. कलाश जनजाति की परंपराओं को अकसर हिन्दुओं की प्राचीन मान्यता से जोड़ा जाता है, हालांकि उनकी शुरुआत को लेकर एक रहस्य बरकरार है. पाकिस्तान के अफगानिस्तान से सटे बॉर्डर पर सटी कलाश जनजाति पाकिस्तान के सबसे कम संख्या वाले अल्पसंख्यकों में है. हिंदू कुश पहाड़ों के बीच बाहरी दुनिया से एकदम अलग-थलग रहने वाले ये लोग पहाड़ को काफी मान्यता देते हैं. इस पहाड़ के कई ऐतिहासिक संदर्भ भी हैं, जैसे इसी इलाके में सिकंदर की जीत के बाद इसे कौकासोश इन्दिकौश कहा जाने लगा. यूनानी भाषा में इसका अर्थ है हिंदुस्तानी पर्वत. यही कारण है कि इस समुदाय को सिकंदर महान का वंशज भी माना जाता है.
पाकिस्तान में पहले नहीं थी मान्यता
साल 2018 में पहली बार कलाश जनजाति को पाकिस्तान की जनगणना के दौरान अलग जनजाति के तौर पर शामिल किया गया. इसी गणना के अनुसार इस समुदाय में कुल 3,800 लोग शामिल हैं. यहां के लोग मिट्टी, लकड़ी और कीचड़ से बने छोटे-छोटे घरों में रहते हैं और किसी भी त्योहार पर औरतें-मर्द सभी साथ मिलकर शराब पीते हैं. इस जनजाति में संगीत हर मौके को खास बना देता है. ये त्योहार पर बांसुरी और ड्रम बजाते हुए नाचते-गाते हैं. हालांकि अफगान और पाकिस्तान के बहुसंख्यकों से डर की वजह से ये ऐसे मौकों पर भी साथ में पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र से लेकर अत्याधुनिक बंदूकें भी रखते हैं.
औरतें चलाती हैं घर
वैसे कलाश जनजाति में घर के लिए कमाने का काम ज्यादातर औरतों ने संभाला हुआ है. वे भेड़-बकरियां चराने के लिए पहाड़ों पर जाती हैं. घर पर ही पर्स और रंगीन मालाएं बनाती हैं, जिन्हें बेचने का काम पुरुष करते हैं. यहां की महिलाएं सजने-संवरने की खासी शौकीन होती हैं. सिर पर खास किस्म की टोपी और गले में पत्थरों की रंगीन मालाएं पहनती हैं.
त्योहार पर होता है चुनाव
यहां सालभर में तीन त्योहार होते हैं- Camos, Joshi और Uchaw. इनमें से Camos को सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है जो दिसंबर में मनाया जाता है. ये पर्व मंदिर में मनाया जाता है, जिसे jestekan कहते हैं. कई बार ये घरों से बाहर खुली जगह में भी मनाते हैं. घर के पुरुष ब्रेड बेक करते हैं और महिलाओं को देते हैं. इसके बाद एक खास प्रक्रिया होती है, जिसे शुद्धिकरण कहते हैं. इसके बाद त्योहार शुरू हो जाता है, जो पूरे 14 दिन तक चलता है. इस दौरान मिलने वाले लोग एक-दूसरे को फल और मेवे तोहफे में देते हैं. छोटे-छोटे मेले भी लगते हैं.
मनपसंद साथी चुनने की आजादी
यही वो मौका है जिसमें महिलाएं -पुरुष और लड़के-लड़कियां आपस में मेल-मुलाकात करते हैं. इसी दौरान बहुत से लोग रिश्ते में जुड़ जाते हैं. इस जनजाति के लोगों में संबंधों को लेकर इतना खुलापन है कि महिलाओं को अगर दूसरा पुरुष पसंद आ जाए तो वे उसके साथ रह सकती हैं. पाकिस्तान जैसे देश में जहां महिला आजादी की बात भी फतवे ला सकती है, ऐसे में इस तबके में औरतों को मनपसंद साथी चुनने की पूरी आजादी है. वे पति चुनती हैं, साथ रहती हैं लेकिन अगर शादी में साथी से खुश नहीं हैं और कोई दूसरा पसंद आ जाए तो बिना हो-हल्ला वे दूसरे के साथ जा सकती हैं.
न्यूयॉर्क टाइम्स के हवाले से न्यूज 18 अंग्रेजी में छपी रिपोर्ट में इसी जनजाति की एक महिला बताती है कि त्योहार के दौरान एक-दूसरे को पसंद करने पर लड़की, लड़के के साथ चली जाती है और उसके साथ हफ्ता या महीनाभर गुजारकर वापस अपने घर लौटती है. इसके बाद माना जाता है कि लड़की उस लड़के से शादी करना चाहती है और तब जाकर शादी होती है. लड़के-लड़की पर परिवार अपनी मर्जी नहीं थोप सकता.
आधुनिक तौर-तरीकों के बाद भी महिलाओं पर कई बंदिशें भी
पीरियड्स के दौरान यहां भी महिलाएं अपने घरों में नहीं रह सकतीं, बल्कि उन्हें कम्युनिटी होम में जाना होता है. लेकिन नेपाल या कई दूसरे देशों की तरह यहां कम्युनिटी होम की हालत बदतर नहीं, बल्कि पक्के बने हुए घर होते हैं, जिसमें सारी सुविधाएं होती हैं. पांच दिन पूरे होने पर वहीं से नहा-धोकर महिलाएं घर लौटती हैं. ऐसी मान्यता है कि पीरियड्स के दौरान घर में रहने या परिवार के लोगों को छूने पर ईश्वर नाराज हो जाएंगे, जिससे बाढ़ या अकाल जैसे हालात हो सकते हैं. महिलाएं जहां रहती हैं, उसे बशाली घर कहा जाता है जिसकी दीवार पर लिखा होता है कि उसे छूना मना है.
समुदाय के कई तौर-तरीके अलग हैं जैसे मौत इनके लिए रोने नहीं, खुशी का, त्योहार का मौका होता है. क्रियाकर्म के दौरान ये लोग जाने वाले के लिए खुशी मनाते हुए नाचते-गाते और शराब पीते हैं. वे मानते हैं कि कोई ऊपरवाले की मर्जी से यहां आया और फिर उसी के पास लौट गया.