मुंबई। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही उनके मुख्य मंत्रित्वकाल का ‘गुजरात मॉडल’ चर्चा में आ चुका था। 2004 में उनके द्वारा कृषि क्षेत्र में की गई पहल अब रंग दिखाने लगी है। यानी उन सुधारों को अपनाने वाले किसानों की आमदनी दोगुनी से ज्यादा होने लगी है। अब प्रधानमंत्री के रूप में वह यही ‘गुजरात मॉडल’ पूरे देश की कृषि व्यवस्था पर लागू करना चाहते हैं। जिसके विरोध में माहौल बनाने की कोशिश विरोधी दल पूरी ताकत से करते दिखाई दे रहे हैं।
- आलू की खेती 200 बीघा से बढ़कर 1000 बीघा पर पहुंची
प्रधानमंत्री मोदी के गांव वडनगर निवासी किसान रंजीत ठाकोर कुछ वर्ष पहले तक कपास और रेंड़ की खेती कर प्रति बीघा मुश्किल से 40,000 रुपए वार्षिक ही कमा पाते थे। अब वह उन्हीं खेतों पर कांट्रैक्ट फार्मिंग के तहत आलू की खेती कर एक लाख रुपए प्रति बीघा कमा रहे हैं। वह कृषिधन प्रोड्यूसर्स कंपनी लि. नामक फार्म प्रोड्यूस आर्गनाइजेशन (एफपीओ) के 4400 सदस्यों में से एक हैं, जो बालाजी वेफर्स नामक कंपनी के लिए आलू की खेती कर रहे हैं। यह एफपीओ फिलहाल उत्तर गुजरात के पांच जनपदों के 170 गांवों में सक्रिय है। करीब पांच साल पहले शुरु हुए इस एफपीओ से शुरुआत में सिर्फ 20-25 किसान ही जुड़े थे।
अब उनके अनुभव को देखकर इस समूह में साल दर साल किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। आलू की खेती 200 बीघा से बढ़कर 1000 बीघा पर पहुंच गई है। इस साल आलू के 1000 टन बीज की बुवाई हुई है। अगले साल इसके दोगुना हो जाने की उम्मीद है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि आलू खरीदने वाली कंपनियों की संख्या भी अब क्षेत्र में बढ़ती जा रही है। बालाजी वेफर्स के अलावा अब हाइफन फूड, मैकेन और हिमालय फूड जैसी कंपनियां किसानों से संपर्क करने लगी हैं। एक कंपनी यदि 20 किलो के 180 रुपए दे रही हो, और दूसरी 190 रुपए देने को तैयार हो, तो किसान 190 वाली कंपनी से अनुबंध करने को स्वतंत्र हैं। यानी किसान राजा है। फिलहाल आलू की ही खेती कर रहे किसान जल्दी ही कान्ट्रैक्ट पद्धति से मूंगफली जैसी अन्य फसलों की भी खेती करने की योजना बना रहे हैं।
- किसानों को मिल रहा है दो गुने से ज्यादा का लाभ
कृषिधन प्रोड्यूसर्स कंपनी लि. के चेयरमैन वसंतभाई पटेल बताते हैं कि उनके एफपीओ में जहां 4400 किसान शेयरधारक हैं। वहीं करीब 15000 किसान इससे परोक्ष रूप से जुड़े हैं। यह एफपीओ बीज, खाद और कीटनाशक थोक में खरीद कर इन किसानों तक पहुंचाता है। इसमें आलू खरीदनेवाली कंपनियां भी मददगार होती हैं। एफपीओ और कंपनी की मदद के कारण किसानों को कई बार बीज, कीटनाशक, खाद तथा कृषि उपकरण आदि आधी दर पर ही उपलब्ध हो जाते हैं। बाजार भाव से काफी कम कीमत पर तो मिलना तय ही है। दूसरी ओर कंपनियों के साथ फसल का भाव अनुबंध के समय ही तय हो जाने से किसान प्राप्त होने वाली रकम को लेकर भी निश्चिंत रहते हैं।
रंजीत ठाकोर कहते हैं कि पहले किसान आलू के भाव बहुत कम हो जाने से अपनी पूरी फसल सड़क पर फेंकने को बाध्य हो जाते थे। अब एक ओर तो फसल की उत्पादन लागत कम आती है, दूसरी ओर फसल का भाव भी अनुबंध के अनुसार ही मिलता है। इससे किसानों को दो गुने से ज्यादा का लाभ मिल रहा है। माना जाता है कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि कानून कांट्रैक्ट फार्मिक की इस प्रक्रिया को और आसान कर देंगे।
- किसानों के बीच वितरित होता है लाभ
एक बात और….कंपनी के प्रबंधक जसवंत भाई कहते हैं कि कृषिधन प्रोड्यूसर्स कंपनी जैसे एफपीओ कंपनी कानून की धारा-8 के तहत पंजीकृत होते हैं। इन कंपनियों को अपना सारा लाभ किसानों के बीच ही वितरित करना होता है। इससे कंपनी नाजायज तरीके से कोई लाभ नहीं ले पाती। लाभ के इस सौदे में ज्यादा से ज्यादा किसान इससे जुड़ना चाहते हैं। लेकिन इन एफपीओ में शेयरधारकों को शामिल करने की एक सीमा निर्धारित है। चेयरमैन वसंतभाई बताते हैं कि शेयरधारकों की संख्या बढ़ाने में वह कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहते। किसानों को हो रहे लाभ का पूरा आकलन करके ही सारे सदस्य जो निर्णय करेंगे, वैसा किया जाएगा। गुजरात और महाराष्ट्र राज्य सहकारिता में अग्रणी रहे हैं। अब उसी तर्ज पर कृषि उत्पाद संघ (एफपीओ) भी किसानों की किस्मत बदलने का काम कर रहे हैं।