जम्मू-कश्मीर में डोडा जिले के भाला ब्लॉक में दस गांव कभी भेड़ की ऊन से बनने वाले कंबल के लिए जाने जाते थे। ग्रामीण बुनकर अपने हुनर के प्रदर्शन के साथ ही स्वयं का रोजगार भी चला रहे थे। आधुनिकता के कारण पहले ही बुनकर बेरोजगार हो चुके थे, वहीं सरकार और हथरकघा विभाग की अनदेखी के कारण अब इन बुनकरों ने कंबल बनाने का पेशा ही छोड़ दिया है। लोगों के कम रुझान और सरकार की तरफ से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलने से वर्तमान में अधिकांश बुनकर मजदूरी व अन्य कार्य कर रहे हैं।
डोडा जिले से 10 किलोमीटर दूर ब्लॉक भाला के गांव सिंद्रा, भटोली, कैलाड़ में एक समय 30 से 40 बुनकर थे। लकड़ी की खड्डियों के सहारे कंबल बुनकर अपना गुजारा करते थे। लकड़ी की खड्डियों पर बनने वाले कंबल भेंड़ की ऊन और धागे से तैयार होते थे। पहाड़ी क्षेत्रों में ठंड अधिक होने से इन कंबलों की काफी मांग रहती थी। अलग-अलग आकार और रंग के कंबल न सिर्फ गांवों बल्कि शहरवासियों को भी लुभाते थे।
कोई प्रोत्साहन न मिलने से छोड़ा काम
60 वर्ष के बुनकर गिरधारी लाल कहते है कि उनके पिता कभी कंबल बुनने का काम करते थे। उसके बाद मैंने काम शुरू किया। लकड़ी की खड्डियों पर ऊन से बने धागे से कंबल बुना जाता था। मैंने 30 से अधिक वर्षों तक कंबल बनाने का काम किया। लेकिन लोगों के कम होते रुझान और हथकरघा विभाग की अनदेखी से कंबल बनाने का काम छोड़ना पड़ा।
कंबल बनाने वाले गजदीश कुमार बताते है कि अब इन कंबलों के प्रति लोगों का रुझान की खत्म हो गया है। अब लोग फैक्टरी में तैयार होने वाले कंबल ही लेते हैं। हमें न तो हथरघा विभाग से कोई मदद मिली है और न ही कोई रोजगारपरक जानकारी। इसके कारण कंबल बनाने का पेशा ही छोड़ना पड़ा। बुनकरों के लिए सरकार की योजना केवल कागजों तक ही सीमित रह जाती है।
कुछ कारणों से जिन बुनकरों ने काम छोड़ दिया है, उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए विभाग जल्द अभियान चलाएगा। हम सभी गैर पंजीकृत बुनकरों को पंजीकृत करने पर काम कर रहे है। कोरोना काल के दौरान कुछ पाबंदियों के कारण हमारी टीमें उक्त इलाकों का दौरा नहीं कर पाई हैं। जल्द ही सभी बुनकरों को प्रोत्साहित कर उन्हें दोबारा इस काम में जोड़ा जाएगा।- विकास गुप्ता, निदेशक हथकरघा विभाग, जम्मू