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क्या कहता है विज्ञान: नींद में हमें कुछ सुनाई क्यों नहीं देता है?

ByADMIN

Jan 16, 2023 ##science, ##Sleep

16 जनवरी 2023 |  यदि हमें देखने बंद करना हो तो हम अपनी आंखें बंद कर सकते हैं. ऐसी सुविधा हमारे कानों के लिए नहीं है. कानों को बंद (Closing the Ears) करने के लिए हमें उनके अंदर मजबूत किस्म की रुई ठूंसनी होगी लेकिन उससे भी बाहर की आवाजें कम होती हैं पूरी तरह से जाती नहीं हैं. तो फिर ऐसा क्यों होता है कि जब हमें नींद में होते हैं तो हमें आसपास की आवाजें सुनाई (Hearing While listening) नहीं देती हैं. इस मामले में हमारे दिमाग के पास क्या कोई खास प्रणाली होती है जिससे सुनने की क्षमता को बंद किया जा सकता है. आइए जानते हैं कि इस बारे में क्या कहता है विज्ञान (What does Science say)?

सिर्फ दिमाग होता है इसके पीछे
इस सवाल का जवाब हमारे दिमाग की कार्यप्रणाली में छिपा हुआ है जो देखने सुनने सहित सभी तरह की संवेदनाओं को नियंत्रित करने का काम करती है. गहरी नींद में हमारा शरीर यानि की दिमाग ही तय कर लेता है कि आसपास की होने वाली आवाजों, गतिविधियों और गंधों को नजरअंदाज करना है जिन्हें जागते समय बिना किसी प्रयास के ही पहचान लेते हैं और नजरअंदाज नहीं कर पाते हैं.

दिन रात काम करते हैं कान
ऐसे सारे फैसले हमारे दिमाग में ही होते हैं. अजीब सी बात लग सकती है, लेकिन सच यही है कि हमारे कान हर समय एक ही तरह से कार्य करते हैं उनका काम उनतक आ रही आवाजों को दिमाग तक पहुंचाने का होता है जो वे सोते समय भी करते रहते हैं. लेकिन यह हमारा दिमाग ही है जो सूचनाओं के संकेत छानने का करता है और तय करता है कि क्या हमें आवाज की प्रतिक्रिया देनी है या फिर सोते रहना है.

कायम रहती है नींद
जागते समय हमारा दिमाग सुनी गई आवाजों की याद्दाश्त बनाता है लेकिन यदि हम जाग नहीं रहे होते हैं वह ऐसे काम करता है जैसे कि हमने कुछ सुना ही नहीं है. यह एक बड़ी खासियत होती है क्योंकि इससे हमारी नींद बनी रहती है और हमारे आसपास कुछ होते रहने से भी हम जागते नहीं हैं और हमें यह भी याद नहीं रहता है कि सोते समय हमारे आसपास क्या हुआ था.

तो फिर तेज आवाज में क्यों..?
लेकिन ऐसा भी नहीं है दिमाग यह काम पूरी तरह से बंद ही कर देता है. अगर ऐसा होता तो हमारे लिए दुनिया में जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है. नींद में वैसे तो हमारा दिमाग सामान्य और छोटी आवाजों को नजरअंदाज करता है, लेकिन हमारे शरीर का सुरक्षा तंत्र जिसे भी दिमाग ही नियंत्रित करता है वह सक्रिय रहता है. यही वजह है कि जब नींद के दौरान आसपास बहुत तेज आवाज होती है उससे हमारी नींद टूट जाती है. और हम चौंक कर उठा जाते हैं.

और भी कई तरह की आवाजें
इसके अलावा और कई तरह की आवाजें भी मायने रखती हैं जिनके प्रति हमारा दिमाग पहले से संवदेनशील होता है जैसे दरवाजे की घंटी या मोबाइल फोन. वहीं वे सभी आवाजें जो हमें किसी खतरे या चेतावनी का संकेत देती हैं उन्हें सुनकर हमारा दिमाग हमें जागने पर मजबूर कर देता है. इससे हम फैसला ले पाते हैं कि हमें अपनी सुरक्षा के लिए कुछ कदम उठाने हैं या नहीं.

बहुत ही जरूरी उपकण
सोते समय आवाजों के प्रति यह संवेदनशीलता भले ही हमें बहुत जरूरी ना लगती हो, लेकिन हमारे पूर्वजों के लिए यह बहुत ही जरूरी और अस्तित्व को कायम रखने का एक जरूरी उपकरण थी. पुरातन काल में मानवों को जंगली जानवरों से खुद को सुरक्षित रखना पड़ता थी. इसी के लिए हमारे दिमाग में सुरक्षा कार्यप्रणाली काम करती है जो हर मानवीय गतिविधि पर हावी होती है.

इसके बावजूद हमारे शरीर और दिमाग की कार्यप्रणाली में गहरी नींद और कच्ची नींद का अंतर देखने की क्षमता होती है और दोनों ही तरह की नींद में काफी अंतर भी होता है. कच्ची नींद में जागने की संभावना ज्यादा होती है. रात के पहले हिस्से में, रात के बाकी हिस्से की तुलना में हम ज्यादा गहरी नींद में सोते हैं. इसके अलावा हर व्यक्ति की आवाजों के प्रति संवेदनशीलता भी अलग-अलग होती है.

सोर्स :-“न्यूज़ 18 हिंदी|”   

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