• May 10, 2024 2:54 am

क्या लड़ाकू विमान भी कोहरे की वजह से उड़ान नहीं भर पाते… जानें सच्चाई ?

ByADMIN

Jan 16, 2024 ##prompttimes

16जनवरी 2024
आजकल उत्तर भारत के ज्यादातर इलाके कोहरे से प्रभावित हैं. हर साल दिसंबर-जनवरी महीने में यह कोहरा ट्रेन-हवाई जहाज की यात्रा को मुश्किल में डाल देता है. ट्रेन लेट होना आम बात है तो हवाई जहाज कई बार देर से उड़ान भरते हैं तो कई बार दिल्ली की जगह जयपुर-अहमदाबाद या कहीं और लैंड करवाना पड़ता है. हवाई यात्रा में पैसेंजर्स की सुरक्षा सर्वोपरि रखते हुए जहाज संचालन करने वाली कंपनियां और उनके पायलट कोहरे में जहाज उतारने एवं उड़ाने का अंतिम फैसला करते हैं.

ऐसे हाल में एक सामान्य सा सवाल किसी के दिमाग में उठता है कि क्या पैसेंजर विमान की तरह लड़ाकू विमान भी टेक ऑफ एवं लैंडिंग में दिक्कतों का सामना करते हैं? इसका साधारण सा जवाब है-हां, फाइटर प्लेन के पायलट भी इन दिक्कतों का सामना करते हैं.

जैसी तकनीक, वैसी सुविधा

जानकार बताते हैं कि कोहरे के बीच टेक ऑफ और लैंडिंग का मामला एयरपोर्ट पर उपलब्ध सुविधाओं-संसाधनों और जहाज के तकनीक से जुड़ा हुआ है. जिस एयरपोर्ट पर जितना शानदार और उच्च तकनीक उपलब्ध है, स्वाभाविक तौर पर वहां थोड़ी ज्यादा सुविधा होती है. यही बात जहाज में लगी तकनीक पर भी लागू होती है. फाइटर प्लेन भी इससे अलग नहीं हैं. उन्हें भी कोहरे में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वायुसेना से रिटायर एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फाइटर प्लेन हो, मालवाहक हो या पैसेंजर, मौसम की मार या कहें कि कोहरे का सामना सभी तरह के विमानों को करना पड़ता है.

उनके मुताबिक बस फर्क यहां पड़ता है कि जहां इन्हें लैंड करना है या जहां से टेक ऑफ करना है, वहां सुविधाएं कैसी हैं? तकनीक कैसी इस्तेमाल हो रही है? इसी आधार पर दिक्कतें कम या ज्यादा हो जाती हैं. चूंकि एयरफोर्स के ज्यादातर बेस स्टेशन सुविधाओं से युक्त हैं और उनकी उड़ान पब्लिक डोमेन में नहीं होती हैं, इसलिए किसी को लग सकता है कि फाइटर प्लेन दनादन टेकऑफ या लैंड करते हैं, पर ऐसा है नहीं. दिक्कतें उन्हें भी होती हैं. हवा में एक बार पहुंचने पर सारी दिक्कतें दूर हो जाती हैं. सारी परेशानी केवल टेक ऑफ एवं लैंडिंग के दौरान ही होती है.

CAT तकनीक है मददगार

प्लेन की सुरक्षा में इस्तेमाल की जाने वाली एक तकनीक है-CAT-III. इसकी मदद से यह काम आसान हो जाता है. यह एक नेविगेशन सिस्टम है, जो बहुत कम विजिबिलिटी पर भी लैंडिंग में मददगार है. दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एंटी फॉग लैंडिंग सिस्टम भी लगा हुआ है. जिन विमानों में CAT-III तकनीक उपलब्ध है, वे यहां आसानी से उतर जाते हैं. कुछ एयरपोर्ट पर CAT-IIIB प्रणाली भी लगी हुई है. इससे टेक ऑफ में भी आसानी होती है. पर, यह दोनों तकनीक बेहद खर्चीली हैं. इनका मेन्टेनेंस भी काफी महंगा है. करोड़ों का इनवेस्टमेंट है, इसलिए एयरपोर्ट अथारिटी एवं विमान संचालन वाली कंपनियां इस तकनीक को अपनाने से बचने का प्रयास करती हैं. दो महीने की सुविधा के लिए कई करोड़ रुपये लगाने के जोखिम से अच्छा यह माना जाता है कि फ्लाइट टेक ऑफ एवं लैंडिंग में तनिक सावधानी बरती जाए. यात्रियों की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए कुछ नुकसान उठाना भी फायदे का सौदा है.

फाइटर प्लेन को तकनीक से लैस कर रही वायुसेना

CAT तकनीक एक शानदार टूल है. यह हर हाल में मददगार है. यह ऑटो मोड में पायलट की मदद के लिए जाना जाता है. कम विजिबिलिटी में भी इस तकनीक के सहारे टेक ऑफ एवं लैंडिंग हो जाती है. कारगिल युद्ध के बाद देश के फाइटर प्लेन को तकनीक की दृष्टि से और मजबूत किया गया है. उस समय खराब मौसम की वजह से भारतीय सुरक्षा बलों को दिक्कतों का सामना करना पद था, उसी दौरान दुश्मन सेना को आगे बढ़ने में मदद मिल गई थी. उसी के बाद वायुसेना अपने हर फाइटर प्लेन तथा अपने एयर बेस को तकनीक से लैस करती जा रही है. केंद्र सरकार ने भी हर हाल में वायुसेना को मजबूती देने के प्रति कृतसंकल्प लिए हुए है.

स्रोत-” TV9 भारतवर्ष ”   

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