21 सितम्बर 2022 | आजादी के बाद यह पहला मौका है, जब भारत-पाक बॉर्डर पर तारबंदी के उस पार जीरो लाइन की भारत की सरजमीं पर यहां एक ऐसा कुआं है, जाे आजादी से पहले यानि 100 से भी ज्यादा पुराना है। आजादी के बाद भी भारत-पाक के लोग इस कुएं से पानी पीते थे, लेकिन 1965, 1971 के युद्ध और इसके बाद 1990 के दशक में बॉर्डर तारबंदी के बाद यह कुआं ऐसी सरजमीं पर चला गया, जहां आम आदमी की पहुंचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। क्योंकि यह कुआं भारत की बॉर्डर तारबंदी के उस पार जीरो पॉइंट की जमीन पर है। जहां पहुंचने के लिए बीएसएफ की अनुमति जरूरी है।
कुआं जीरो पॉइंट की लाइन के अंदर भारत में है, लेकिन यहां पहुंचने के लिए तारबंदी को क्रॉस करना पड़ता है। इसी वजह से दैनिक भास्कर ने बीएसएफ गुजरात फ्रंटियर आईजी/डीआईजी से विशेष अनुमति ली।
बाड़मेर जिले के बाखासर इलाके के भारत-पाक बॉर्डर पर दो देशों की सरहदों के बीच आया यह कुआं 100 साल पुराना है। आजादी से पहले एक ही वरनार गांव था, अब इस कुएं के तरफ दोनों देशों में दो वरनार गांव है। भारत के सारला, जाटों का बेरा, बाखासर, सूजो का निवाण, दीपला, पांधी का निवाण, वहीं पाकिस्तान के वरनार, तार घाटू दाल, ओहमरार, साकरियो सहित कई गांवों की हजारों की संख्या आबादी पानी पी रही थी।
1990 से 1992 के बीच में रेगिस्तान में भारत सरकार ने बॉर्डर पर तारबंदी की। इसके बाद से इस कुएं तक आमजन का पहुंचना मुश्किल हो गया और यह कुआं धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो गया। इस कुएं के दोनों तरफ भारत-पाक की ढाणियां भी है।
इस कुएं के 10 किमी. में भारत में आबाद हो गए किसान, पाकिस्तान में बर्बाद
बॉर्डर तारबंदी के बीच फंसे इस कुएं के आसपास के 10 किमी. में किसानों ने करीब 20-25 कुएं खोद रखे है। खास बात ये है कि इस इलाके में कुओं में मीठा पानी है। किसान बागवानी से लेकर जीरा-ईशबगोल, रायड़ा सहित कई फसलों की बुआई कर सालाना लाखों रुपए कमा रहे है। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान में सरहद तक बिजली भी नहीं पहुंची है, ऐसे में पाकिस्तान के गांव वीरान पड़े है। यहां तक की पाकिस्तान में सरहद के गांव और ढाणियों तक भी बिजली नहीं है।