01-जुलाई-2021 | एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से महाराष्ट्र में कृषि उत्पादकता विशेष रूप से चार प्रमुख फसलों – सोयाबीन, कपास, गेहूं और चना के मामले में प्रभावित होने के असार हैं।एक वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल कम्युनिटीज (आईएससी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र को जलवायु परिवर्तन से बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ रहा है, जो राज्य में इन चार फसलों के उत्पादन को प्रभावित कर सकता है।
‘महाराष्ट्र की कृषि पर जलवायु परिवर्तन प्रभाव’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में वर्ष 1989-2018 के सप्ताह-वार 30-वर्ष के औसत की जांच की गई है और इसके आधार पर राज्य के खानदेश, मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों के आठ जिलों में वर्ष 2021-50 तक के लिए वर्षा और तापमान के आंकड़ों की भविष्यवाणी की गई है।
आईएससी के एसोसिएट निदेशक (जल और कृषि कार्यक्रम) रोमित सेन ने कहा कि इस रिपोर्ट में जलवायु मॉडलिंग और अनुमानों (ऐतिहासिक और भविष्य दोनों) को फसल एवं पशुपक्षियों पर जलवाय संबंधी परिवर्तन की घटनाओं के प्रभाव और समुदाय की भागीदारी पर आधारित आकलन को शामिल किया गया है।रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि मानसून की देर और अल्पवृष्टि से सोयाबीन और कपास के अंकुरण को प्रभावित हो रहा है।
मध्य खरीफ मौसम के दौरान अधिक वर्षा से कवक रोगों, खरपतवारों और कीटों में वृद्धि होगी।आईएससी के कंट्री डायरेक्टर (इंडिया) विवेक पी अधिया ने कहा, “रबी सत्र में आगे बहुत कम या लगभग कोई बारिश नहीं होने की भविष्यवाणी है, जिससे फसल पूरी तरह से सिंचाई पर निर्भर रहेगी। भूजल सिंचाई का प्रमुख स्रोत होने के कारण, इस पर दबाव बढ़ जाएगा।”अधिया ने कहा कि कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए खेती के बारे में फैसला करने वालों को परस्पर जोड़ने, लागत में सुधार करने, खेती के बेहतर तौर तरीकों की जानकारियां बढ़ाने और संसाधन संरक्षण के लिए बेहतर प्रबंधन तौर तरीकों को अपनाने की आवश्यकता होगी।
Source : “लेटेस्ट ली”