12 सितंबर 2022 |साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक संस्था कृति द्वारा हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में गायत्री मंदिर सभागृह में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें प्रमुख वक्ता के रूप में वेद एवं उपनिषद मर्मज्ञ डॉ.ममता खेडे का उद्बोधन हुआ। डॉ.ममता खेडे ने कहा कि वेद वस्तुतः धर्मग्रंथ नहीं है, असंख्य ऋषि-मुनियों की श्रुतियों द्वारा इनकी रचना हुई है। वस्तुतः ये ग्रंथ मौलिक जिज्ञासाओं का विस्तार है। सृष्टि की उत्पत्ति से पहले क्या था, इसका निष्चित उत्तर कोई नहीं दे सकता पर नासदीय सूत्र बताते हैं कि सृष्टि की रचना से पहले मृत्यु नहीं थी क्योंकि जीवन भी नहीं था। ऋषि मुनियों ने श्रुतियों के माध्यम से कई जिज्ञासाओं का समाधान खोजने की कोषिष की है। अंधेरे में जन्मा हमारा सृजनहार एक प्रकाषपुंज है, जिससे सृष्टि का सृजन हुआ। वेदों में वर्णित सूत्र हमें जीवन जीने की पद्धति बताते हैं, धर्म मूलतः उपासना पद्धतियों का नाम है, जिसे अलग अलग धर्मों में अलग – अलग तरह से लिये जाने के कारण अलग-अलग धर्मों को माना जाने लगा। हमारे ऋषि हमें एकता का मंत्र दे गये हैं। हमारा मंत्र एकता का होना चाहिये। हम भेदभाव को भूल जाएं। उपनिषद वेदों से आगे की स्थिति बताते हैं। उपनिषद हमें एक दूसरे से मधुमय भाव से रहने की प्रेरणा देते हैं। उपनिषदों की रचना का समय 3000 से 3500 ईसापूर्व तक का माना जाता है। उपनिषद वेदों के दार्षनिक सत्य की अभिव्यक्ति हैं जो भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं।डॉ.ममता खेडे ने निमाडी बोली में वेदों एवं उपनिषद की ऋचाओं का अनुवाद भी सुनाया जो स्वयं उनके द्वारा किया गया था।
कार्यक्रम के प्रारंभ में कृति के अध्यक्ष भरत जाजू ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम संयोजक सत्येन्द्रसिंह राठौड ने विषय प्रवर्तन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ.अक्षय पुरोहित ने किया व आभार प्रदर्षन कृति के सचिव कमलेष जायसवाल ने किया।
इस अवसर पर प्रो. बीना चौधरी, प्रकाष भट्ट, डॉ.पृथ्वीसिंह वर्मा, षैलेन्द्र खेडे, अजय हिंगे, सत्येन्द्र सक्सेना, राजेष जायसवाल, डॉ.माधुरी चौरसिया, प्रो.आर.एल.जैन, ओमप्रकाष चौधरी, नीरज पोरवाल, दिलीप मित्तल, डॉ.जीवन कौषिक, दर्षनसिंह गांधी, हरिष मंगल, अजीतसिंह चौहान, डॉ.राजेन्द्र जायसवाल, मीनू लालवानी, अजय षर्मा, प्रवीण गौड, गिरीष मनावत, राजेन्द्र उपाध्याय, किषोर जेवरिया आदि कई प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
Source:-” शिवालय ग्राफिक्स”