• March 29, 2024 1:44 am

गुमनामी में छिपे इन लोगों को आप कभी नहीं देख पाएंगे, जो किसी न किसी तरीके से आपकी जिंदगी को आरामदेह बना रहे हैं।

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13 जून 2022 | मेरा यकीन करें, हर सुबह एक-सी दिखती है, पर होती नहीं है। जीवन का हर क्षण एक जैसा नजर आता है, पर ऐसा नहीं होता। बादल धीरे-धीरे छा रहे हैं, प्यासी मिट्‌टी को इंद्र से पानी की बौछारें मिल रही हैं...यही अंतर है आज की और कल की सुबह में। ऐसे दिनों में लगता है कि बस बिस्तर पर लेटे रहें और सुबह की भागदौड़ का मन नहीं होता। इस रविवार को मुंबई में मॉनसून की पहली बारिश में मुझे ऐसा ही लग रहा था। दिमाग के एक सिरे ने कहा, मिट्‌टी की सौंधी खुशबू का लुत्फ उठाए, तो दूसरे सिरे ने कहा कि आज राजेश से मिलना चाहिए।

राजेश सड़क के उस पार बने रेस्तरां से निकलकर दौड़ते हुए आता है बस पर चढ़कर चला जाता है और इस ओर मैं मुंबई में पवई लेक के पाथवे पर तय जगह पर स्ट्रेचिंग करता हूं। पर वो बस में चढ़ने से पहले कभी भी ‘गुड मॉर्निंग सर’ कहना नहीं भूलता। इस अभिवादन से मेरा ध्यान उस पर जाता है, पर मैं उसके बारे में कुछ नहीं जानता।

एक दिन मैंने तय किया कि रेस्तरां गार्ड से जाकर उसके बारे में पूछूंगा जो कि इस समय दौड़कर आता है। सुरक्षा गार्ड ने कहा ‘कौन वो मोरीवाला राजेश? अरे वो बहुत दूर से आता है और अगर ये बस चूक गया तो घर के रास्ते की लोकल ट्रेन चूक जाएगा।’ मराठी में किचन सिंक को ‘मोरी’ कहते हैं और बर्तन साफ करने वालों को मोरीवाला, ये शब्द होटल कर्मचारियों का दिया हुआ है और उनके बिजनेस से बाहर चर्चित नहीं है।

रविवार को मैं खुद ही बस स्टॉप पर जाकर खड़ा हो गया। ज्यों ही वो दौड़कर आया और विश करने ही वाला था कि मैंने कहा, ‘गुड मॉर्निंग राजेश।’ उसकी आंखों में चमक आ गई, क्योंकि पहली बार किसी बाहरी से उसने अदब से अपना नाम सुना था। उसकी नौकरी रात के 10 से सुबह 6 बजे तक की होती है, इस बीच वह टेबल-फर्श साफ करता है, मेजों-शेल्व्स पर रखे मिनिएचर्स साफ करता है, बर्तन-चम्मच-चाकू-छुरी धोता है, अगली सुबह शेफ के प्रयोग के लिए इन्हें सुखाकर करीने से शेल्फ पर जमाता है।

वह अपनी सैलरी के पूरे नौ हजार रु. उप्र में अपने घर भेजता है, क्योंकि वहां जीवनयापन और इकलौते बच्चे की पढ़ाई का खर्च, दोनों यहां से कम हैं। उसका अपना खर्च सर्विस चार्ज से निकल जाता है, जो कि हर महीने रेस्तरां मालिक बांटते हैं, ये ढाई हजार से लेकर साढ़े चार हजार रु. के बीच होता है, जो कि ग्राहकों की संख्या और ऑर्डर के आधार पर तय होता है। हालांकि बहस जारी है कि ‘क्या ग्राहक के बिल में सर्विस चार्ज जोड़ना कानूनसम्मत है?’ ऐसे में राजेश जैसे लोगों की जिंदगी संकट में है। अगर सर्विस चार्ज खत्म हो जाता है तो वह घर लौटने का सोच रहा है।

इस बहस का परिणाम जो भी हो, पर क्या आप इस बात से वाकिफ हैं कि जब हम सोते रहते हैं, तो ये राजेश जैसे अनजान चेहरे अपने काम में व्यस्त होते हैं? कई कामों के बीच वे एयरपोर्ट पर टॉयलेट साफ करते हैं, हम अपनी कार बाहर निकालें, उससे पहले वे सड़कें साफ करते हैं, रेलवे प्लेटफॉर्म पर कचरा, अस्पताल का फर्श साफ करते हैं।

राजेश को जानकर और संघर्ष से भरे उसके जीवन की कहानी सुनकर मेरा दिल भर आया। मुझे अहसास हुआ कि ऐसे बहुत बड़ी संख्या में लोग हैं, जो हमारी जिंदगी के लिए हर क्षण काम कर रहे हैं, भले ही हम उन्हें जानते हों, नहीं जानते हों या जान भी नहीं सकते। जागरूक रहकर ही कम से कम उनके जीवन को समझने में मदद मिलेगी।

फंडा यह है कि बिना सचेत रहे गुमनामी में छिपे इन लोगों को आप कभी नहीं देख पाएंगे, जो किसी न किसी तरीके से आपकी जिंदगी को आरामदेह बना रहे हैं। उनके प्रति विनम्र रहें और अगर उनकी आर्थिक मदद नहीं कर सकते, तो कम से कम अपने विचारों में तो विनम्र रहें।

सोर्स ;- ‘’दैनिक भास्कर’’


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